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यथार्थ और कल्पना के बीच झूलती है सारी रचनाएं,
कल्पनाएं हमारे जीवन में हमेशा मौजूद होती है जाने और अनजाने .
यथार्थ की चिड़िया कितना भी पंख खोल ले पर वह पूरे आसमान को नहीं नाप सकती है, वहीं दूसरी ओर कल्पना की चिड़िया को उड़ान के लिए कई आसमान कम पड़ जाते हैं,इसलिए मैंने अपनी रचना की चिड़िया को एक पंख यथार्थ का लगाया दूसरा कल्पना का और हमेशा दोनों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करता हूं, ऐसा करने से मैं अक्सर ही एक अलग स्फूर्ति से भर जाता हूं.
पिंटा के अलावा इस किताब को मैंने अलग-अलग खंडों में बांटा है,मुझे अक्सर प्रकृति और कविताओं की रचना प्रक्रिया दोनों ही एक अलग तरीके से सम्मोहित करती हैं, इसलिए आपको बहुत सी रचनाएं इन्हीं दोनों के इर्द-गिर्द लक्षणा और व्यंजना की धुरी पर घूमती नजर आएँगी और कुछ कविताएं सीधे तौर पर सिर्फ यथार्थ की भी है.
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