You can access the distribution details by navigating to My pre-printed books > Distribution
निरंतर (http://www.nirantar.org) हिन्दी चिट्ठाकारों के एक समूह द्वारा प्रकाशित विश्व की पहली ज्ञात हिन्दी ब्लॉगज़ीन और जाल-पत्रिका थी। गैरपेशेवर प्रकाशकों द्वारा निकाली जाने वाली यह पत्रिका प्रकाशित लेखों पर त्वरित टिप्पणी करने का मौका देती थी। निरंतर की स्थापना 2005 में की गई, पहले यह पंकज नरूला द्वारा स्थापित अक्षरग्राम.कॉम डोमेन के अंतर्गत प्रकाशित होती थी परंतु बाद में अपने ही डोमेन से प्रकाशित होने लगी। जाल पर हिन्दी के बढ़ते प्रयोग के मद्देनज़र यह प्रयास शुरु किया गया था। पत्रिका से जुड़े लोग वैसे तो चिट्ठाकार (ब्लॉगर) थे पर यह पत्रिका उनके औपचारिक लेखन को प्रस्तुत करने का एक मंच बनी।
अगस्त 2005 में निरंतर का प्रकाशन 6 अंकों के उपरांत बंद हो गया था। 1 साल बाद अगस्त 2006 में इसका प्रकाशन नये कलेवर में दुबारा शुरु हुआ और अगस्त, अक्तूबर व दिसंबर में तीन अंक प्रकाशित होने के बाद पुनः बंद हो गया। मई 2007 से जुलाई 2008 के मध्य इसके अंक यदा कदा पुनः प्रकाशित हुये। पत्रिका के कुल दस अंक प्रकाशित हुये हैं, जिन्हें संक्षिप्त रूप में अब पोथी पर ईबुक के रूप में पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book Nirantar : Hindi Webzine | निरंतर : हिन्दी जालपत्रिका.