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" धुआं "
इस किताब के नाम की शुरुआत एक ऐसे शब्द से है जो इस धुंदली सी धुंआ-धुआं दुनिया केे बीच ज़िन्दगी को देखने और दिखाने की कोशिश है।
ये किताब इंसानी ज़िन्दगी के अच्छे बुरे पहलुओं ,लम्हों, हादसों का खूबसूरत शब्दों से सजा हुआ एक संकलन है जिसे पढ़ने वाले को भी इस धुंध में कहीं न कहीं किसी ना किसी रूप में अपना भी चेहरा दिखाई देगा।
" धुआं " , महज़ एक किताब जिसमे ये भी लिखा हुआ है की किसी काम की शुरुआत से पहले अपने रब को याद करना शुक्रिया करना भी किस ख़ूबसूरती से करना चाहिए उसे आप "हम्द" में पढ़ सकते है।
" धुआं " एक ऐसी किताब जिसमे औरतों पे एक सवाल है " में औरत हूँ " जिसमे नारीवाद के उस आईने को लिखा गया है जिसे पढ़ने को बाद औरतों को खुद में गुमान नहीं होगा की वो इस तरह से भी दर्शायी जा सकती है |
" धुआं " एक किताब जिसमे कई शेर ऐसे हैं जो हमारे मुल्क के मौजूदा हालात की आवाज़ बनकर आम लोगों के कानों तक पहुंचाने की कोशिश है ।
" धुआं " किताब जिसमे " बेवफाई " को दर्द के धागों में पिरोकर ग़ज़ल के अंदाज़ में " वह लड़की " नाम से पेश किया गया है |
" धुआं " जिसमे ग़ज़ल, शेर, व्याख्या के ऐसे ऐसे मोती हैं जिन्हे पिरोकर कर एक माला बनायीं गयी है जिन्हे पढ़ कर आप खुद में ये महसूस करेंगे की ऐसी कई घटनाये आपकी ज़िन्दगी से जुड़ी हुई है जो आपको लज़्ज़त भी देगी और सीख भी |
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