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नाटककार, कथाकार आ उपन्यासकारक रूपमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजी मैथिली साहित्यमे नूतन उर्जाक संग उपस्थित भेल छैथ। हिनक जन्म 1947 ई.मे भेल। विभिन्न पत्र-पत्रिकामे हिनक कथा, प्रेरक कथा उपन्यास सेहो प्रकाशित भऽ चुकल अछि।
ऐ ‘उत्थान-पतन’ उपन्यासमे लेखक गामक जिनगीक यथार्थक नव-नव रूप उपस्थित केने छैथ। गामक जड़ता, रीति-रिवाज, पाबैन-तिहार, मूर्खता, विद्वता, अड़ि जाएबला भाव आ सहज सोभाव आदि सहज रूपमे आबि गेल अछि।
तत्वक दृष्टिसँ देखल जाए तँ सर्वप्रथम कथावस्तु धियानकेँ आकृष्ट करैत अछि। कथावस्तु तँ सशक्त आधार अछि जैपर उपन्यासक केतेको रंगक प्रसाद ठाढ़ होइत अछि, जइमे जिनगीक श्वास रहब आवश्यक।
उत्थान-पतनमे गंगानन्द, यमुनानन्द, पण्डित शंकर, सुधिया, ज्ञानचन्द, भोलिया, बिशेसर, भोलानाथ, सुकल, नीलमणि, मोहिनी, रीता, महंथ रघुनाथ दास, लीला, दीनानाथ, गुलाब आदि अनेक पात्रसँ सज्जित भऽ अंचलक मार्मिक चित्र उपस्थित भेल अछि।
कथावस्तुमे विच्छिन्न होइत गाम-घर आ टुटैत बेकती सबहक समस्याकेँ मार्मिक ढंगसँ अभिव्यक्ति कएल गेल अछि। उपन्यासक प्रारम्भ होइत अछि-
“गामे-गाम केतौ अष्टयाम-कीर्तन तँ केतौ नवाह, केतौ चण्डी यज्ञ तँ...
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