You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
भय जीवन का अंत नहीं, एक आमंत्रण है, अपने भीतर जागी उस चेतना तक पहुँचने का, जो अब तक शोर के पीछे छिपी रही। हम सबने कभी न कभी उस मौन तूफ़ान को महसूस किया है जो विचारों की दौड़, स्मृतियों के बोझ और भविष्य को नियंत्रित करने की बेचैनी से उठता है। समस्या भय में नहीं, उससे भागने की आदत में है। जैसे ही हम रुककर उसे समझना सीखते हैं, वही ऊर्जा दिशाबोध बन जाती है, मन शिथिल होता है, श्वास गहरी होती है, और भीतर एक अनकहा विश्वास जन्म लेता है।
“निर्भय जीवन” भय से युद्ध की नहीं, रूपांतरण की पुस्तक है। यह दिखाती है कि विचार, स्मृति और कल्पना किस तरह भय का आकार बनाते हैं; मस्तिष्क की रसायनिकी जागरूकता, ध्यान और साक्षीभाव से कैसे बदलती है; और नियंत्रण तथा स्थायित्व की जिद किस तरह पीड़ा का बीज बोती है। पाठक धीरे-धीरे समझता है कि परिवर्तन जीवन का धर्म है, समर्पण पराजय नहीं बुद्धिमत्ता है, और उत्सव भागना नहीं, उसी जीवन के साथ चलना है जो निरंतर नया हो रहा है। जब यह दृष्टि भीतर उतरती है, भय प्रेम में, प्रतिरोध समर्पण में, और पीड़ा करुणा में बदलने लगती है। तब जीवन कोई परीक्षा नहीं रह जाता; वह एक जीवंत अनुभव बन जाता है जिसमें आत्मविश्वास, आनंद और दिव्य चेतना स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होते हैं।
यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं पर मन बार-बार पीछे खींच लेता है, यदि आप जीना चाहते हैं पर भीतर की आशंकाएँ रास्ता रोक लेती हैं, तो यह पुस्तक आपका सच्चा सहचर है। इन पृष्ठों के साथ चलते-चलते आप पाएँगे कि निर्भयता भय के अभाव से नहीं, उसके बीच जागे रहने की कृपा से जन्म लेती है; और यहीं से शुरू होता है वह जीवन, जो हर क्षण को प्रेम, शांति और उत्सव में बदल देता है।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book निर्भय जीवन.