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अन्तः मन की व्याकुलता को जब मैंने पंक्तिबद्ध किया तो उसने न जाने कब एक कविता का रूप ले लिया, मुझे पता भी नहीं चला। यह संकलन जब 'मन की सरिता' के रूप में प्रकाशित हुआ तो मेरे मन में एक अजीब- सी उमंग थी जो अकल्पनीय थी।
'मन की सरिता' जीवन में आए कुछ खट्टे मीठे पलों का संकलन है। जीवन एक तलाश में गुजर जाता है जो कभी पूरी नहीं होती।
महारत हासिल थी भीड़ को अपना बनाने में।
पर रहे नाकाम खुद को खुद से मिलाने में।
हर मोड़ पर रिश्तों का व्यापार नजर आया।
घुट गया दम, आंसुओं का सैलाब छिपाने में।
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