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जीवन में संतुलन साधने की चुनौती जीवन पर्यन्त बनी रहती है। व्यक्ति निरन्तर अपने अनुभवों को संरचित व पुनर्संरचित करते हुए अपने जीवन में लय की खोज करता रहता है। संवेदनाएं, अनुभवों की ग्रहणशीलता व शार्टकट अपनाने से उपजी विमुखता जीवन में उम्मीदों (फूलों) और आशंकाओं या पीड़ा (शूलों) की उत्पत्ति को बढ़ाते या घटाते हैं। पीड़ान्तक स्वर व आचरण भी जीवन-फूलों की सरसता उपजाते हैं। हमारे दिलोदिमाग में जीवन शूल तैरते रहते हैं व उनकी चुभन वक्त के तकाजों के रूप में बदलती रहती है। वैचारिक असमानताओं की खाई वेदना-शूलों में बदल सामाजिक समरसता को कुप्रभावित करती रहती है। प्रस्तुत काव्य-संकलन जीवन के शूलों को जीवन के फूलों में रूपान्तरित करने में कामयाब कर जीवन को लययुक्त कर सकेगी।
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