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चुप रहो, लोग क्या कहेंगे?”
यह सिर्फ एक वाक्य नहीं — एक परंपरा है, एक डर है, एक दीवार है…
जिसने न जाने कितनी आवाज़ों को दबा दिया,
और कितने दिलों को खामोश कर दिया।
यह किताब, उन खामोश लड़कों, टूटे हुए रिश्तों, दबे हुए सपनों और अनकहे जज़्बातों की कहानी है — जो अक्सर अनसुने रह जाते हैं।
हर अध्याय एक सच्चाई है —
कभी प्यार में टूटा लड़का,
कभी मर्दानगी के बोझ तले रोता हुआ बेटा,
कभी सपनों को मार कर जीने वाला युवा।
यह किताब सिर्फ लड़कों की नहीं, हर उस इंसान की है जो कभी न कभी “चुप” रह गया।
अगर आप भी कभी रोए हैं…
पर किसी ने नहीं पूछा,
अगर आप भी कभी बिखरे हैं…
पर दिखाया नहीं,
तो यह किताब आपके लिए है।
पढ़िए — क्योंकि अब चुप रहना बंद होना चाहिए।
“हर खामोशी एक कहानी कहती है —
बस कोई सुनने वाला चाहिए।”
Ek baar toh jarur padhni chahiye
Ye kuch sikha degi , kuch man halka kar degi , or man ki baat jaan legi