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कर्मा (Karma)

Dynamics of Life
Mahendra D Raajul
Type: Print Book
Genre: Self-Improvement, Religion & Spirituality
Language: Hindi
Price: ₹299 + shipping
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Description

यद्दपि यह एक पुस्तक है, किन्तु आपका जीवन बदल सकती है I जीवन सुख-दुःख का एक मिश्रण है किन्तु जब दुःख धैर्य से अधिक हो जाते हैं तब सहस्रों प्रश्न उठते हैं I यदि आपके दुःख भी धैर्य खो चुके हैं, मन में प्रश्न हैं तो यह पुस्तक आपको अवश्य पढ़नी चाहिए I संभवत: यह पुस्तक आपके जीवन में धर्म पथ पर कर्म द्वारा आत्मवादी व भौतिकवादी वैभव की प्राप्ति का मर्गदर्शक बने I
* क्यों कुछ बच्चे धनवान परिवार में जन्म लेते हैं, कुछ निर्धन परिवार में और कुछ माता-पिता घर में तो संतान ही जन्म नहीं लेती ?
* क्यों कुछ बच्चे अजन्मे ही ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं, कुछ जन्म के तत्पश्चात और कुलाखों रूपये अस्पताल में खर्च करवाने के पश्चात ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं ?
* क्यों कोई योग्य व्यक्ति जीवन भर धक्के खाता है, और कोई अयोग्य सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच जाता है, और कोई क़र्ज़ में डूबकर आत्महत्या कर लेता है ?
* क्यों कोई व्यक्ति लाटरी में करोड़ों रूपये जीत जाता है और अन्य लाखों टिकिट खरीदने वाले खाली हाथ रह जाते हैं I जबकि कार्य सभी ने एक जैसा किया था ?
* क्यों कोई कुकुर (Dog) किसी सामान्य व्यक्ति से भी उत्तम जीवन व्यतीत करता है, कुछ जीवन भर सड़कों पर भटकते हैं I
* क्यों एक ही दुर्घटना में कुछ व्यक्ति ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं और कुछ व्यक्तियों को खरोंच तक नहीं आती ?

*जीवन के घटनाक्रम व परिस्थितयां आपके (प्रारब्ध) पूर्व कर्म, पितृ कर्म ओर वर्तमान कर्म प्रभावों का सुनिश्चित ओर संयुक्त परिणाम है I ब्रह्मांडीय जीव की कर्माचक्र धुरी 3 कर्मों के परिणाम (स्व:अर्जित प्रारब्ध, वर्तमान कर्म ओर पितृ कर्म) परिधि चक्र के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं I मूलतः 2 कर्मों के प्रभाव मनुष्य को आत्यधिक कष्ट अथवा पीड़ा पहुंचाते हैं (शेष)

* प्रत्येक भौतिक-आध्यात्मिक क्रिया जिन्हे मनुष्य जन्म से मृत्यु तक प्रति क्षण, इंद्रियों, अंगों, आसक्ति, अनासमन, मन, विवेक एवं भावना के सहयोग से क्रियान्वित करता है, कर्म सिद्धांत उन कर्मों, विचारों, व इच्छाओं की प्रतिक्रिया (फल) इस जीवन में या अगले जीवन में लौटाने को बाध्य है I कर्म क्रिया में कर्तापन की सूक्ष्म मान्यता से बंधे होते हैं I जब कोई कर्म करता है और मानता है कि “मैं कर रहा हूँ” तो अहंकार भाव उत्पन्न होता है I जबकि मनुष्य एक विचारशील प्राणी है, जिसकी तंत्रिकाओं को मष्तिक, मस्तिष्क को बुद्धि, बुद्धि को बौद्धिकता ओर बौद्धिकता को चेतना नियंत्रित करती है जोकि "मैं" है I परन्तु यह सत्य है कि "मुझमें" (मैं के भीतर) कुछ है जो चेतना का सत्य एवं शुद्ध रूप है - (शेष)

* सामान्यतः जब व्यक्ति कर्म पर विमर्श कर्ता है तो मुख्यतः प्रारब्ध व वर्तमान कर्म की अनुभूति करता है, जबकि एक भारी बोझ वह अपने पूर्वजों के कर्मों का भी ढो रहा है I जिस प्रकार संतान को पूर्वजों की धन-सम्पदा, रिश्ते-नाते, रक्त- डीएनए, विरासत में मिलते हैं, उसी प्रकार उनके कर्मों के फल-दोष भी विरासत में ही मिलते हैं I कार्मिक संबंध जीवात्माओं का पुनर्मिलन है, जो पूर्व जन्मों से एक-दूसरे के प्रति कई गुण-अवगुण, अनसुलझे, अपूर्ण खाते को व्यवस्थित करने हेतु बार-बार जन्म लेते हैं I (शेष)

* ईश्वर ने स्वयं को निष्पक्ष, निराकार स्थापित कर आकार, पक्ष, बुद्धि, बल, भाव व आवश्यकताओं के रूप में एक सूक्षम आत्मा को प्रत्यक्ष कर्ता के अभिमान स्वरुप मनुष्य को जन्मा है I ईश्वर ने मनुष्य को ही उसके कर्म- प्रतिक्रिया का उत्तरदायी बनाया है I ईश्वर उसके कर्मों के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं, केवल उनके परिणामों के प्रति उत्तरदायी हैं I

* जीवन में कर्म के बिना व्यक्ति व्यावहारिक रूप से एक ठहराव पर है I जो व्यक्ति प्रयास नहीं करता, वह योजना नहीं बना पाता है और नाहिं वह किसी कार्य में सफल हो पाता है I किन्तु यदि व्यक्ति प्रयास करता है, क्रिया करता है, तब वह चलाएमान है I किसी ठहरे हुए वाहन की तुलना में चलते हुए वाहन को निर्देशित करना सरल होता है, ठहरा हुआ वाहन किसी गंतव्य तक कदापि नहीं पहुँच सकता I यदि व्यक्ति विपरीत दिशा में भी जा रहा है, तो संभव हैं व्यक्ति पुनः मार्ग पर लौटे I स्मरण यह रखना है कि व्यक्ति की त्रुटियां चाहे कितनी भी विशाल या सूक्षम क्यों न हों, अंतत: व्यक्ति उनसे अवश्य कुछ सीखता है I जब व्यक्ति त्रुटियों से सीखता है और तदनुसार अपने कार्य करने की प्रणाली को समायोजित करता है तब व्यक्ति प्रगति करने के लिए बाध्य है I जो व्यक्ति निरंतर प्रयास करता है, वह असहाय की भावना से बचता है, जिन्हें वह चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अनुभव कर सकता है I व्यक्ति भले ही क्रिया-उन्मुख हैं या नहीं, उसे जीवन में आलस्य ठहराव की स्थति को त्याग कार्य करते रहना चाहिए (शेष)

About the Author

एक बेहद प्रतिभाशाली, बहुमुखी और ऊर्जा से भरपूर व्यक्ति, जिसे किसी एक व्यक्तित्व या पेशे तक सीमित नहीं किया जा सकता । वह एक अध्यात्मवादी, प्रेरक वक्ता, कर्म विद्वान, गुरु, मार्गदर्शक, धार्मिक, समाजवादी, लेखक, मीडिया पेशेवर, पारिवारिक व्यक्ति मित्र हैं I भिन्न भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न भिन्न रूप हैं । उनका पूरा नाम श्री महेंद्र दयाराम राजुल है; उन्होंने सत्त्वपिंडी सेवा की स्थापना की और उन्हें सत्त्वपिंडी गुरुजी (भैयाजी) के नाम से भी जाना जाता है।
एक मीडिया पेशेवर और एक व्यवसायी जो संयोगवश अध्यात्मवादी बन गए। हालाँकि ब्रह्मांड में कोई संयोग नहीं है, सब कुछ पूर्व निर्धारित है, जिसका एहसास उन्हें अपने अध्ययन और आत्मबोध के बाद हुआ; कुछ घटनाओं ने उन्हें अपना आरामदायक जीवन त्यागने और कई धारणाओं के उत्तर खोजने के लिए बाध्य किया, जैसे-
• जीवन का उद्देश्य क्या है?
• यदि ईश्वर एक है तो उसने आत्माओं को विभिन्न रूपों में क्यों बनाया?
• दुनिया भर में सबके सुख-दुख, जीवन-मृत्यु, प्रेम-घृणा और आर्थिक स्थति एक समान क्यों नहीं हैं?
• भेदभाव क्यों और किस कारण से होता है? क्या कोई पिता अपनी संतान के प्रति पक्षपात दिखा सकता है?
इन चिंताओं के उत्तर की खोज में उन्होंने हरिद्वार, काशी और मथुरा में कई संतों और तपस्वियों की संगति में रहते हुए आध्यात्मिक विद्वानों के साथ समय बिताया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। वह पूजा स्थलों और संस्थानों में रहे, श्रीमद्भगवद गीता, गरुड़ पुराण और अन्य धार्मिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन किया। 9 वर्षों से अधिक के त्याग, ध्यान, ज्ञान, अनुसंधान, कठिन प्रयास और विद्वान संतों की संगति के बाद उत्तर स्वतः ही खोजे गए। हालाँकि, ऐसा करने के लिए, व्यापार, उद्योग और सामाजिक संबंधों से एक निश्चित मात्रा में अप्रत्याशित रूप से वियोग उत्पन्न हुआ।
वर्त्तमान में कर्म और धर्म पर आधारित उनके प्रेरक भाषणों और सुझावों के माध्यम से हजारों लोगों का जीवन बदल रहा है। कर्म (प्रारब्ध, पैतृक और वर्तमान) पर उनके विशिष्ट विचारों ने उनके परिवर्तनकारी भाषण, मार्गदर्शन और पुस्तक के माध्यम से देश भर में हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। उन्हें पैतृक कर्म का गहन ज्ञान है जो समकालीन पौराणिक कथाओं और धर्मग्रंथों के लिए प्रासंगिक है। इसके अलावा, उन्होंने और अन्य विशेषज्ञों ने "सत्त्वपिंडी यंत्र" बनाया है जो गरुड़ पुराण में वर्णित सतपिंड तर्पण पर आधारित है। सत्त्वपिंडी यंत्र पितृदोष यंत्र का दूसरा नाम है, जो बहुत प्रसिद्ध है। उनका दृष्टिकोण किसी के धर्म या आस्था को कम नहीं करता, बल्कि जीवन के सत्य को समझना और स्वीकार करना, भावी जीवन को सुखी और सफल बनाने की युक्तियाँ अवश्य प्रदान करता है।
वह चाहते हैं कि मनुष्य वर्तमान में कर्तव्य-उन्मुख हो, ताकि वह वर्तमान भौतिक संसार में भाग्य का आनंद ले सके और नए कर्म करते हुए भी कर्म की गांठों से छुटकारा पा सके। बंधनों से मुक्त रहें, कर्म योग के मार्ग पर आत्म-ज्ञान और भौतिक ज्ञान को संतुलित करके अर्जित ऐश्वर्य और खुशी प्राप्त करें और मानव रूप में प्राप्त इस जीवन के उद्देश्य को पूरा करें।

Book Details

Publisher: Self
Number of Pages: 223
Dimensions: 5"x8"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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