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इंसान का जीवन भगवान का एक अमूल्य, विस्मयकारी एवं अत्यन्त ही उपयोगी उपहार है । व्यक्ति यदि सजगता पूर्वक, धैर्य पूर्वक एवं सुनियोजित सद्कर्मों के द्वारा जीवन यापन करता है तो उसका जीवन देव तुल्य हो जाता है।
व्यक्ति का जीवन प्रत्येक क्षण प्रत्येक कदम पर कुछ न कुछ ज्ञान एवं अनुभव समेटे रहता है। ज्ञानवान एवं मुमुक्ष व्यक्ति सदैव चैतन्य रहते हुए ज्ञान और अनुभवों को ग्रहण करते हैं और कर्मों के माध्यम से उसे चरित्रार्थ करते हैं।
कभी अकेले में बैठकर कल्पना के उड़ानों में महानता के सपने बुनते हुए मात्र दो दिनों में सृजित की गई ज्ञान का दीप जलाता हूँ । महानता के सपनों के बीच मन प्रेम के गीत गुनगुनाने लगता है और प्रारम्भ हो जाता है इसका सृजन। इस संसार में वह ज्ञान किस काम का जिसमें भगवान की भक्ति अथवा निष्काम प्रेम न हो, अर्थात जो ज्ञान भवसागर से पार न लगा सके वह ज्ञान व्यर्थ है । इसी आशय को जीवन के विभिन्न परिस्थितियों, रुपों एवं अवसरों के सन्दर्भ में व्याख्या देने की कोशिश में ज्ञान का दीप जलाता हूँ सृजित हो जाता है ।
मन को एकाग्रचित्त कर ध्यान को जब भगवान में लगाने की कोशिश करता हूँ , तो कुछ और करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है । उस शून्य में तो जैसे प्रेम का ही संसार बसा हो । उस संसार में प्रवेश करने के पश्चात तो जैसे सृजन शक्ति का एक असीम प्रवाह तन, मन और बुद्दि में प्रवाहित होने लगता है । विचारों का प्रवाह टूटने का नाम नहीं लेता और लेखनी रुकने का नाम नहीं लेती है। इसलिए मन बार-बार कहने को होता है कि प्रेम से बड़ी शक्ति इस संसार दूसरी कोई नहीं है । प्रेम अभिव्यक्ति है परमात्मा का, प्रेम शक्ति है सृजन का, प्रेम मार्ग है संसार के समस्त सुखों के प्राप्ति का ।
प्रीत के गीत गाते हुए मन प्रीत को जान पाने के लिए भावों एवं विचारों का ताना-बाना बुनता है । कभी प्रीत प्राणों की पुकार बनकर अन्तर्मन के द्वार खोलते हुए अन्दर की दुनिया अर्थात चेतना के संसार का सैर करने लगता है, तो कभी भौतिक स्तर पर अवलोकन करने लगता है । जीवन में अवसर आते ही रहते हैं जब व्यक्ति सभी कार्यों से विमुख हो जाता है। तब उसे आवश्यकता महशूश होती है कारण की । तब प्रायः यह प्रेम ही किसी न किसी रुप में उसे जीवन का कारण दे जाता है ।
मन सदा-सदा के लिए डूब जाना चाहता है प्रेम के आगोश में, लेकिन ऐसा सम्भव नहीं हो पाता है । क्योंकि इस संसार के भौतिक साधनों में वह चीर स्थायित्व ही नहीं है। इसलिए कुछ देर के सुख के पश्चात पुनः वही रिक्ततता जीवन को घेर लेती है, और प्रारम्भ हो जाती है एक नयी तलाश स्थायित्व की
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