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प्रस्तुत पुस्तक मेरे लेखन यात्रा, समय समय पर लिखे गए ब्लॉग विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आर्थिक विषयों को लेकर लिखे गए लेखों का संग्रह है. इसमें जो भी बातें लिखी गई हैं यदि वो किसी घटना या निर्णय के सम्बन्ध में है तो वह उस समय विशेष पर उस घटना या निर्णय के सम्बन्ध में उठ रही विचारों की अभिव्यक्ति मात्र है और मेरा मानना है की जिस प्रकार समय और घटनायें बदलती है उसी प्रकार वह समय विशेष भी परिवर्तित होता है और उसके अनुसार विचार भी . यह अभिव्यक्ति घटनाओं के सापेक्ष में निर्पेक्ष भाव से लगभग सबके शासन काल में लिए गए निर्णयों को लेकर है और किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई व्यक्तिगत विचार नहीं है. कई बार बातों को कहने के लिए व्यंग्य शैली का प्रयोग किया है लेकिन वह भी विषय को रोचक और पाठक को पठनीय बनाए के लिए ताकि लेखन यात्रा के साथ पठन यात्रा भी सुगम हो जाए. जब कहीं आपको लगे की आलोचना तीखी हो गई है आप उसे मान लीजियेगा की यह मेरी व्यंग्य शैली है .
इस पुस्तक “इंडिया इकनोमिक डायरी” के लेखन यात्रा में आपको ज्यादेतर श्री मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल और श्री नरेन्द्र मोदी जी के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था सम्बन्धी विषय मिल जायेंगे. सम भाव से सारी बातें लिखी हैं. समग्र भाव से मै मानता हूँ की अन्य कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों से अलग भारत की अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में मनमोहन सिंह जी द्वारा उठाये गए कदम महत्वपूर्ण और मील के पत्थर साबित हुए. उनके बाद आये श्री नरेन्द्र मोदी ने क्रांतिकारी सुधारात्मक कदम उठाये जिसके बारे में कोई सोच नहीं सकता. सदिच्छा से और दूरगामी परिणाम को ध्यान में रखते हुए श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उठाये गए कदम की मीमांसा आगे आने वाला भविष्य इतिहास के रूप में करेगा, लेकिन जो साहसिक कदम नोटबंदी , जीएसटी, डिफेंस में मेक इन इंडिया और बहुत सारे कानूनों के निरस्तीकरण के साथ उन्होंने उठाया है वह एक साहसिक व्यक्तित्व का काम है. वर्तमान में विद्वान इनके समर्थन और विरोध में लिख रहें हैं किन्तु मेरा मानना है की विपक्ष के लेखकों ने ना तो श्री मनमोहन सिंह के साथ न्याय किया और ना श्री नरेन्द्र मोदी के साथ.
श्री मनमोहन सिंह ने जो बात कही वह इनके अलावा श्री नरेन्द्र मोदी पर भी लागू होता है, इन दोनों का मूल्यांकन आगे आने वाली सदियाँ करेंगी.
यह पुस्तक तत्कालीन घटनाओं पे प्रतिक्रियास्वरूप लिखी गई लेखों का संग्रह है जो एक स्वतंत्र चिंतन से लिख गया है. लेख के पब्लिश होने के दौरान जब कभी एक पक्ष की समालोचना होती थी तो वह पक्ष बोलता था की लगता है दुसरे तरफ वाले हो और ठीक इसी तरह जब दुसरे पक्ष की होती थी तो दूसरा पक्ष वाला भी ऐसे ही बोलता था. इन दोनों धाराओं के बीच मैं रास्ता बनाते हुए सच को लिखता चला जाता था, हां लेकिन कोशिश यही रही की समालोचना और रचनात्मक टिप्पणी ही करूं. आप भी पढने के द्वारा इसे ऐसे ही लीजियेगा और कभी किसी के खिलाफ कुछ लगे तो उसे मेरे व्यंग्य शैली का हिस्सा मान लीजियेगा इससे ज्यादा कुछ नहीं.
पुस्तक “इंडिया इकनोमिक डायरी” के तहत करीब मैंने अपने सैकड़ों लेखों में से इकनोमिक से जुडी १०० लेखों का संग्रह बनाया है और योजना है की इसे ३ भाग में पब्लिश करूँ, प्रस्तुत पुस्तक भाग प्रथम है, और आशा है की आपको भारत के अर्थ दर्शन में यह पुस्तक सहायता प्रदान करेगी और मेरी स्वतंत्र दृष्टि से आप आर्थिक घटनाओं की विवेचना कर पाएंगे.
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