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दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो उम्र के इस पड़ाव से ना गुजरा हो जहाँ उसे किसी से प्यार ना हुआ हो। भले ही वह किशोरावस्था में हुआ हो या तरुण अवस्था में, या फिर परिपक्व होने के बाद। परन्तु जब दिल टूटता है तो सब कुछ बेकार लगने लगता है, दुनिया बेमानी लगने लगती है। और हमें समझ में नहीं आता कि क्या करें?
आप सभी ने 3 घंटे की फिल्म देखी होंगी। उसमें बहुत सी घटनाएं होती हैं। घटनाओं को एक क्रम में जोड़कर एक कहानी बनाकर उसको एक फिल्म के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन जरा सोचिए क्या हमारा जीवन भी फिल्म के किसी घटनाक्रम की तरह नहीं है? क्या एक घटना होने के बाद 3 घंटे की फिल्म आधे घंटे में खत्म हो जाती है? नहीं ना! तो हमारे जीवन में एक घटना होने पर हमारे जीवन का अंत कैसे हो सकता है? हमारा जीवन भी तो बहुत सी घटनाओं की एक श्रंखला है। कुछ अच्छी होती हैं, कुछ बुरी होती हैं। जो हमें अच्छी लगती हैं उससे हम उत्साहित हो जाते हैं। और कुछ घटनाओं से हम निराश हो जाते हैं।
जीवन भी तो एक संपूर्ण यात्रा है, 3 घंटे की फिल्म की तरह! जो शुरू होती है, आगे बढ़ती है, घटनाएं होती हैं, संघर्ष होता है। फिर संघर्ष पर विजय होती है। जीवन का अंत किसी एक घटना पर नहीं हो सकता। हमें सारी घटनाओं का भागीदार बनना पड़ेगा, गवाह बनना पड़ेगा।
परन्तु दिल टूटने पर व्यक्ति अव्यवस्थित हो जाता है। उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व प्रभावित हो सकता है। जबकि दिल तो एक परिकल्पना है। वास्तव में तो ये सब दिमाग का खेल है। दिल को बेवजह दिमाग के मामले में घसीटा जाता है और दुख सहना पड़ता है।
तो फिर अपनी भावनाओं को संयोजित कैसे करें?
चलो कुछ नया करते हैं।
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