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याद है वो ज़माना जब हम एक दूसरे के लिए लम्बी लम्बी चिट्ठियां लिखा करते थे, कितने भी दूर हों पर अपने मन के उद्गार अवश्य प्रेषित कर देते थे चिट्ठी के माध्यम से।
परन्तु अब समय बदल गया है; जब टेलीफोन आया तो लोग फ़ोन के माध्यम से संक्षिप्त वार्तालाप कर लेते थे परन्तु चिट्ठियों का दौर तब भी जीवित था। फिर आया मोबाइल फ़ोन जिसने हमें करीब तो ला दिया किन्तु चिठ्ठियों का आदान प्रदान कम होता गया। और अब सोशल मीडिया तथा व्हाट्सप्प मेसेजों ने तो चिट्ठियों का चलन ही समाप्त कर दिया। अब लोग भूल गए कि कभी हम अपने प्रियजनों की चिट्ठी का इंतज़ार किया करते थे।
किन्तु टेक्नोलॉजी के विकास के साथ भावनाएं भी सीमित होती जा रहीं हैं। अब हम सिर्फ काम की बात करते हैं या फिर बस इधर उधर के सन्देश फॉरवर्ड करते रहते हैं। हमारे मन की सुनने वाला कोई नहीं।
ऐसे में एक पात्र का नया अवतार होता है और वो है पोस्टमैन। पुराने ज़माने के पोस्टमैन की भांति वो सिर्फ चिट्ठियां बांटने का काम नहीं करता अपितु घर घर जाकर लोगों की बात सुनता है, उनकी भावनाओं को जगाता है तथा उन्हें पत्र लिखने को प्रेरित करता है। फिर वो पत्र स्वयं ही व्यक्तिगत रूप से पहुंचाता है और संबंधों को पुनः जोड़ने में सहायता करता है।
ये पुस्तक हमारे सोये हुए भावों को जगाने का एक प्रयास है। हमारे एकाकीपन को साझा करने का प्रयास भी है ताकि हम पुनः अपने मन की बात लिख सकें और प्रेषित कर सकें। लोगों को पुनः एक दूसरे से ह्रदय के स्तर पर जोड़ सकें।
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