लोकप्रिय कहानी लेखिका सुश्री प्रेम गुप्ता "मानी" द्वारा लिखित संस्मरण ‘यह सच डराता है’ वर्तमान भारतीय समाज की भ्रष्टाचार में लिप्त पतनोन्मुखी दशा के विरुद्ध एक टीस भरे आक्रोश की अभिव्यक्ति है। सुश्री ‘मानी’ जी ने अपने संस्मरण में मानव जीवन के एक अहम पहलू ‘जन-स्वास्थ्य’ को ही छुआ है तथा वर्तमान भारतीय समाज में भ्रष्टाचार के शिकंजे में पूरी तरह जकड़ी हुई सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की भीषण दुर्गति से ग्रसित दर्द भरे यथार्थ का हृदयग्राही चित्रण किया है, जो हमारे सम्मुख एक गम्भीर प्रश्नचिन्ह के रूप में कड़ी चुनौती बन कर खड़ा हुआ है। हमारे समक्ष गम्भीर प्रश्न यह है कि ‘क्या सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की अति दुर्दशापूर्ण अवस्था को देखते हुए हम अपने -स्वस्थ मानव जीवन- के आधारभूत लक्ष्य को पाने में सक्षम हैं?’ ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा किसी से छुपी हुई है। समस्त भारतीय समाज (विशेषतया मध्यम और निम्न वर्ग) उससे अवगत ही नहीं वरन उसका भुक्तभोगी भी है। असहाय जन समुदाय निरंतर उसके दंश झेलते हुए पीड़ा सह रहा है, किन्तु अपनी परिस्थितियों से लाचार होने के कारण इस भ्रष्ट सरकारी स्वास्थ्य तंत्र के विरुद्ध आवाज़ उठाने का साहस नहीं करता। सुश्री ‘मानी’ जी ने स्वयं के दर्द भरे अनुभवों के आधार पर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की भीषण दुर्दशा को अपनी लेखनी के माध्यम से सविस्तार उजागर करने का जो सफ़ल प्रयास किया है, वह सराहना योग्य है। मैं सुश्री ‘मानी’ जी को उनके इस सफ़ल प्रयास के लिए साधुवाद देता हूँ।
Re: YAH SACH DARAATA HAI
लोकप्रिय कहानी लेखिका सुश्री प्रेम गुप्ता "मानी" द्वारा लिखित संस्मरण ‘यह सच डराता है’ वर्तमान भारतीय समाज की भ्रष्टाचार में लिप्त पतनोन्मुखी दशा के विरुद्ध एक टीस भरे आक्रोश की अभिव्यक्ति है।
सुश्री ‘मानी’ जी ने अपने संस्मरण में मानव जीवन के एक अहम पहलू ‘जन-स्वास्थ्य’ को ही छुआ है तथा वर्तमान भारतीय समाज में भ्रष्टाचार के शिकंजे में पूरी तरह जकड़ी हुई सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की भीषण दुर्गति से ग्रसित दर्द भरे यथार्थ का हृदयग्राही चित्रण किया है, जो हमारे सम्मुख एक गम्भीर प्रश्नचिन्ह के रूप में कड़ी चुनौती बन कर खड़ा हुआ है। हमारे समक्ष गम्भीर प्रश्न यह है कि ‘क्या सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की अति दुर्दशापूर्ण अवस्था को देखते हुए हम अपने -स्वस्थ मानव जीवन- के आधारभूत लक्ष्य को पाने में सक्षम हैं?’
ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा किसी से छुपी हुई है। समस्त भारतीय समाज (विशेषतया मध्यम और निम्न वर्ग) उससे अवगत ही नहीं वरन उसका भुक्तभोगी भी है। असहाय जन समुदाय निरंतर उसके दंश झेलते हुए पीड़ा सह रहा है, किन्तु अपनी परिस्थितियों से लाचार होने के कारण इस भ्रष्ट सरकारी स्वास्थ्य तंत्र के विरुद्ध आवाज़ उठाने का साहस नहीं करता।
सुश्री ‘मानी’ जी ने स्वयं के दर्द भरे अनुभवों के आधार पर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की भीषण दुर्दशा को अपनी लेखनी के माध्यम से सविस्तार उजागर करने का जो सफ़ल प्रयास किया है, वह सराहना योग्य है। मैं सुश्री ‘मानी’ जी को उनके इस सफ़ल प्रयास के लिए साधुवाद देता हूँ।
डा.एच.पी.खरे
निवर्तमान अध्यक्ष,
अर्थशास्त्र विभाग,
वी.एस.एस.डी कॉलेज,
कानपुर।