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आँचल की चुप्पी
लेखिका: प्रियंका सौरभ
लघुकथा संग्रह
हर चुप्पी एक कहानी होती है। कभी आँचल में छुपी पीड़ा, कभी आँखों से रिसता विरोध, कभी साड़ी के पल्लू में बंधे अधूरे सपने — और कभी बेआवाज़ विद्रोह। "आँचल की चुप्पी" सिर्फ शब्दों का संकलन नहीं, यह स्त्री-मन के उन मौन कोनों का दस्तावेज़ है जिन्हें अक्सर समाज ने अनदेखा किया, अनसुना किया।
इस संग्रह की 100 लघुकथाएँ आधुनिक भारतीय स्त्री के जीवन के विविध रंगों को छूती हैं — घरेलू हिंसा, सामाजिक बेड़ियाँ, आत्मनिर्भरता की खोज, मातृत्व का असमंजस, और सबसे बढ़कर – मौन में छिपे प्रतिरोध की शक्ति। इन कहानियों में बेटियाँ हैं, माएँ हैं, विधवाएँ हैं, कामगार हैं, शिक्षिकाएँ हैं – और सबसे ज़्यादा, एक आम औरत, जो हर रोज़ समाज के असंख्य सवालों से टकराती है।
प्रियंका सौरभ की लेखनी सहज, संवेदनशील और धारदार है। उनकी लघुकथाएँ पाठकों को भीतर तक झकझोरती हैं – बिना कोई भाषण दिए, बिना कोई नारा लगाए। वे स्त्री की चुप्पी में क्रांति की आहट सुनने का निमंत्रण देती हैं।
"आँचल की चुप्पी" उन तमाम औरतों को समर्पित है जिनके संघर्ष कभी खबर नहीं बनते, लेकिन बदलाव उन्हीं के मौन से जन्मता है।
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