You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
वेदों में सहचित्ति, समचित्ति, अभिचित्ति की जो उद्घोषणा है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। इन तीनों अवस्थाओं में मनमानस मनुष्यत्व के उच्चतम शिखरों पर डोलता है। यही विश्व की समस्याओं का हल भी है और इन्हीं की स्पष्ट अभिव्यक्ति ‘संस्कृत धर्म’ है।
प्रसंगवशात्, बच्चों के दो समूहों पर किए गए मनोवैज्ञानिक प्रयोग का उल्लेख पुस्तक की विषयवस्तु को समझने में मददगार होगा। पहले समूह को यह कहा गया कि वे दूसरे समूह को किसी भी स्तर के अच्छे काम के लिए पुरुस्कृत करें और दूसरे समूह को कहा गया कि उन्हें पहले समूह की किसी भी प्रकार की गलतियों के लिए दंडित करें। प्राप्त परिणाम चौंकाने वाले थे। पुरुस्कार देने की बारी पर हर किसी को अच्छे से अच्छे काम पर ‘कम से कम’ पुरुस्कार दिया गया किंतु दंड देने की बारी आने पर छोटी से छोटी गलतियों पर ‘अधिक से अधिक’ दंड दिया गया।
इन दोनों अतियों के बीच में...
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book Sanskrit Dharm.