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सालों पहले एक शहजादा तारा आसमान से टूटकर जमीं पर आ गिरा। यहां उसकी मुलाक़ात शहजादी कोहिनूर से हुई। शहजादी कोहिनूर, जिसे कुदरत ने इस जहां में सबसे नायब और बेशकीमती बनाया था। लोगों से ये इश्क़ बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए उन्होंने शहज़ादे तारे को वापस आसमान में भेज दिया और उसे शहजादी कोहिनूर से हमेशा के लिए अलग कर दिया। फिर सालों तक शहजादी के लिए लड़ाइयां चलती रहीं। हवाओं का रुख एक दिन बदला हुआ सा था जब सात समंदर पार से कुछ लोग आएं और शहजादी कोहिनूर को हमेशा के लिए यूरोप लेकर चले गए। वहां उसकी शादी एक अंग्रेज शहजादे से हुई। शहजादी ने इसे अपनी ज़िंदगी माना और आगे बढ़ गई।
दूसरी ओर, आसमान का वो शहजादा तारा शहजादी कोहिनूर के मुल्क वापस आया। यहां उसे सारे मसले मालूम हुएं। फिर भी वो आखरी बार शहजादी से मिलना चाहता था। एक दिन, वो दोनों जब मिलें तो शहजादी ने उसे समझाया कि वो अपने रिश्ते को दिल से स्वीकार चुकी है और आगे बढ़ गई है। उसने शहजादे तारे को भी समझाया कि अतीत को भूल उसे भी अब आगे बढ़ जाना चाहिए। शहजादा तारा भरी आंखों से सिर्फ शहजादी कोहिनूर को देखता रहा।
फिर उस शहजादे तारे का क्या हुआ ये बात मुझे मालूम नहीं। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि इस दर्द को हर उस इंसान ने करीब से महसूस किया है जिन्होंने अपनी मोहब्बत को किसी और की अमानत बनते देखा है। अक्सर हर इंसान की ज़िंदगी में कोई ऐसा शख़्स होता है जिससे हमारी उम्मीदें जुड़ी तो होती हैं लेकिन उसपे हमारा कोई हक नहीं रह जाता। ये किताब भी उनके लिए जिनकी मोहबत उनके नज़रों के तो सामने है लेकिन उसपे हमारा कोई हक नहीं। पेश है, ‘कसमें भी दूं तो क्या तुझे?’
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