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जब अर्जुन और दुर्योधन कृष्ण के समक्ष उनसे युद्ध में उनके पक्ष को लेकर मिलने गए थे। दुर्योधन पहले आया और जब उसने देखा कि श्री कृष्ण ध्यान में थे तो वो उनके सिर के पास रखे एक आसन पर जा बैठा। थोड़ी देर बाद जब अर्जुन आया तो उसने भी भगवान कृष्ण को ध्यान में पाया मगर अर्जुन ने आसन न चुनकर भगवान की चरणों में बैठना उचित समझा और बैठ गया। श्री कृष्ण ने अपनी आँखें खोला तो उन्होंने अर्जुन को अपनी चरणों में पाया। ऐसा देखा उन्होंने अर्जुन का अभिवादन करने के लिए अर्जुन को हृदय से लगा लिया। उसके बाद उन्होंने दुर्योधन को भी वहां पाया और उसका भी अभिवादन किया। ये दृश्य हमें बताता है कि भगवान की शरण में रहने वाले पर भगवान अपनी कृपा सबसे पहले करते हैं।
और कहते हैं न कि जब भी आप किसी के प्रभाव में आते हैं वो चाहें इंसान हो या भगवान हृदय में सबके लिए प्रेम उमड़ उठता है। मेरे अंदर भी कोई असामान्य तरंगें सालों उमड़ती रहीं और फिर अचानक से वो कलम की नोक का सहारा ले पन्नों पर बहने लगीं। खास बात ये थी कि इन असामान्य तरंगों पर मेरा पूरी तरह काबू था। जब मैं चाहता इनकी धारे प्रेम में बदल देता और जब चाहें इनको पूजा में। पूजा से मेरा आशय यह है कि भगवान का चिंतन करना या उस सर्वव्यापी सृष्टि रचयिता के गुणगान में खुद को समाहित कर लेना। ये किताब ‘देव वंदना’ भी उन्हीं सच्चिदानंद त्रिदेवों, उनके अवतारों और देवी शक्तियों की वंदना मात्र है। जिसमें पौराणिक कथाओं से लेकर प्रार्थना और गीत शामिल हैं।
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