You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
हर कहानी की शुरुआत होती है एक ख़्वाब से, सूरज से कभी, कभी आफ़ताब से। मेहरबानों, क़द्रदानों दिल थामके बैठ जाइए। जेब की रुमाल को अपनी हथेली पर रख लीजिए। आँसू पोंछने के लिए नहीं, बल्कि इस किताब को पढ़ने के बाद अपने चेहरे को पोंछने के लिए। यक़ीन मानिए, 'नींद मेरी, ख़्वाब तेरे' पढ़ने के बाद आप वो इंसान नहीं रह जाएँगे जो अभी आप हैं। यह मैं पूरी दृढ़ता से कह सकता हूँ कि आप हर कविता से जैसे-जैसे रूबरू होते जाएँगे, आपको कुछ महसूस होगा। और अंत में इस रुमाल से अपना चेहरा पोंछने के बाद आपको एक नया चेहरा मिलेगा – मोहब्बत का, इंतज़ार का, एकतरफे प्यार का भी रिश्ता नाम होता है इस विश्वास का और अगर आप पुरुष हैं तो हर स्त्री के उन दिनों की समझ और संवेदनशील को महसूस करने का, जो उन्हें ‘लड़कियों की दिक्कत’ कहकर टाल दिया जाता है।
न जाने वो कौन थी? कोई हूर जो शायद जन्नत से चल कर आई थी? नहीं, रूह जो शायद मेरी साँसों में उतर आई थी? या फिर वो ख़ुद मोहब्बत ही रही होगी, जिसे ईश्वर ने मेरी कई जन्मों की नेकी के बदले सौंपा होगा। क्योंकि मैं तो बस एक साधारण सा लड़का था, जिसने अपने डैडी से कभी "हूँ" से आगे कोई बात नहीं किया और जिसे घनी धूप में भी माँ के आँचल की छाया तले खड़े होना नहीं आया। फिर भी, निराली उड़ान की ख़्वाबिदा सहजता ने जैसे अपना दुपट्टा मेरे हाथों में दे दिया।जवानी की दहलीज़ पर खड़े एक ख़्वाबों के मुसाफ़िर को अपने सीने से लगाया और एक सफ़र दिया।
आज लिख भले ही मैं रहा हूँ लेकिन मेरी हर लफ़्ज़ उसकी है। उसके होने की तसल्ली इतनी कि हर रात सुकून की नींदों ने मेरा सजदा किया, और सहर (सुबह) को उसने ख़्वाबों से भर दिया। यहीं से जन्म हुआ इस किताब “नींद मेरी, ख़्वाब तेरे” का।
ये किताब सिर्फ़ मेरा नहीं, आपका भी अक्स (प्रतिबिंम) है, और हर उस इंसान का है, जिसकी इबादत की सुबह किसी ख़ास नाम से होती है। उस वजूद को समर्पित – और ख़ुद को ज़िंदा रखने के लिए पेश है – "नींद मेरी, ख़्वाब तेरे"।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book नींद मेरी ख़्वाब तेरे.