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दोस्तों, इस किताब में मैंने इबादत के तरीके या उसकी अहमीयत पे ज़ोर नहीं दिया है, ना ही इबादत से होने वाले फ़ायदों का ज़िक्र है। इस किताब में इबादत के मायनों का भी ज़िक्र नहीं है क्योंकि इबादत के मायने हर एक के लिए अलग होते हैं क्योंकि इबादत करने की वजह हर एक की अलग होती है। यह किताब किसी मज़हब, तौर या इंसानियत के बारे में भी कुछ नहीं कहती।
अगर इन सब संभावित बातों के बारे में नहीं है यह किताब तो इसमें है क्या?
यह जानने के लिए इसे पलटिए और पढ़िए। आपके विचारों, शिकायतों और तारीफ़ों का मुंतज़िर
- عشق
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