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मानव सभ्यता का इतिहास विकास और प्रगति की अनगिनत गाथाओं से भरा है। हमने विज्ञान, कला, और तकनीकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलताएँ हासिल की हैं। लेकिन, इन चमकदार उपलब्धियों के बीच कुछ ऐसे गहरे घाव भी हैं जो हमारे समाज की बुनियाद को कमज़ोर कर रहे हैं। भ्रूणहत्या इन्हीं में से एक ऐसा जघन्य अपराध है, जो सिर्फ एक कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि हमारी मानवता और नैतिक मूल्यों पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
यह पुस्तक केवल आँकड़ों और कानूनों का संग्रह नहीं है, बल्कि उस स्याह सच्चाई का दर्पण है जो सदियों से हमारे समाज को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है। भ्रूणहत्या, विशेषकर कन्या भ्रूणहत्या, पितृसत्तात्मक सोच, अशिक्षा और लिंग-भेदभाव की वह सबसे क्रूर अभिव्यक्ति है जो एक अजन्मी बच्ची को इस दुनिया में आने से पहले ही उसका जीवन छीन लेती है। यह एक ऐसा अपराध है जो न केवल एक जीवन का अंत करता है, बल्कि एक परिवार, एक समाज और पूरे राष्ट्र के भविष्य को भी अँधेरे में धकेल देता है। 'भ्रूणहत्या: एक सामाजिक कलंक' नामक यह पुस्तक इस संवेदनशील मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझने का एक प्रयास है। इसमें मैंने भ्रूणहत्या के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और कानूनी आयामों पर विस्तार से चर्चा की है। इस पुस्तक का उद्देश्य केवल इस समस्या को उजागर करना नहीं, बल्कि इसके पीछे छिपी मानसिकता को चुनौती देना और समाज में जागरूकता लाना भी है।
मेरा मानना है कि एक स्वस्थ और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण तभी संभव है जब हम हर जीवन को समान सम्मान और अधिकार दें। यह पुस्तक हर उस पाठक को समर्पित है जो इस सामाजिक कलंक को मिटाने के लिए अपनी आवाज़ उठाना चाहता है। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहाँ हर बच्चे का जन्म उत्सव हो, न कि उसके लिंग के आधार पर उसके जीवन का सौदा।
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