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"बदन की घिसाई" शरीर और रूह के बीच संघर्ष की एक जीवंत दास्तान है। जहाँ बदन जीवन की पीड़ा और बाधाएँ है, वहीं रूह वह मरहम है जो आशा और हिम्मत देता है। यह किताब हर उस इंसान की कहानी है, जो अपने सपनों को पाने के लिए कठिनाइयों और मुश्किल हालातों से लड़ता है। कविता की पंक्तियाँ अनजान सड़कों पर, रात की तन्हाई में और असल जिंदगी की ठोकरों से जन्मी हैं। यह सिर्फ लेखक की नहीं, बल्कि उन सभी की दास्तान है जिन्होंने अपनी राह खुद बनाई और सपनों के लिए जूझे। सरल लेकिन सटीक शब्दों में बुनी यह रचना पाठक को भीतर तक छू जाती है और बताती है कि बिना संघर्ष के कोई मंज़िल नहीं मिलती।
कविता का शीर्षक जस्टिफाइड है
अगर आपके जीवन में संघर्ष और बाधाओं का दबदबा कुछ ज्यादा ही हो जाए, उलझने बढ़ जाए, हिम्मत ख़त्म हो जाए और बेहाल हो तुम तो एक इस किताब को उठाकर पढ़ लेना। बहुत रिलेट करोगे।
एक सच्चा साथी।