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श्री का अर्थ है लक्ष्मी और लक्ष्मी को पूंजी का पर्याय माना जाता है ।हमारे समाज में हर स्त्री को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है और यह एक औरत की भावनाओं पर आधारित कविता संग्रह है जिसके निशाने पर समाज का श्री वर्ग (पुरुष वर्ग) है ।
दूसरे अर्थों में एक रचनाकार के लिए उसकी रचनाओं से बढ़कर कोई पूंजी नहीं हो सकती है इसीलिए इसे श्री कहा गया है ।
यह एक मामूली सा कविता संग्रह है । यह असाधारण उस दिन होगा जिस दिन आप इसे छुयेंगे क्योंकि एक लेखक अधूरा होता है पाठक के बिना ।
सहज बोलचाल की (आम) भाषा का प्रयोग कविताओं में किया गया है क्योंकि कविताओं का विषय आम आदमी है ।साहित्यिक भाषा सिर्फ सभ्य समाज के दायरों में सीमित हो जाती है
इसीलिए इसे भाषा के बंधनों से मुक्त कर दिया गया है ताकि सहज रूप में एक हृदय से निकलकर दूसरे हृदय में स्थान पा सकें ।
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