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संधि (सम् + धि) शब्द का अर्थ है 'योग अथवा मेल' । दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो परिवर्तन होता है उसे संधि कहते हैं । कई बार इस नये शब्द को अलग ही लिखा जाता है बिना जोड़े, किंतु वर्तनी में कुछ परिवर्तन जरूर हो जाता है ।
याद रहे की संस्कृत-हिंदी में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है, स्वाभाविक सरलता से बोलने को ही संधि कहते हैं ।
1.4.109 परः सन्निकर्षः संहिता । अष्टाध्यायी में वर्णों की अत्यन्त समीपता को संहिता या संधि कहा गया है । संधि = उपसर्ग सम् + धा धातु ।
विशेष रूप से इसका मतलब है दो निकटवर्ती वर्ण जो एक ही शब्द के भीतर हों, या पहले शब्द का अन्तिम अक्षर तथा दूसरे शब्द का आदि अक्षर ।
उदाहरण (उदा०)
संहिता = सम् + हिता । संधि के कारण मकार का अनुस्वार में परिवर्तन हुआ है शब्द के भीतर ।
नमः ते = नमस्ते । संधि के कारण विसर्ग का सकार में परिवर्तन हुआ है तथा इन दो शब्दों को जोड़ कर नया शब्द बना है ।
शव आसन = शवासन । योग में हम निश्चिंत लेटने को शवासन के नाम से जानते हैं, यह दो शब्दों की संधि है ।
इस पुस्तक में हर प्रकार की संस्कृत की संधियों को सरल हिंदी भाषा में दर्शाया गया है ।
1. अच् सन्धि या स्वरसंधि
2. हल् सन्धि या व्यंजनसंधि
3. विसर्ग सन्धि
4. अनुस्वार सन्धि
5. विशिष्ट सन्धि
हर संधि का पाणिनि की अष्टाध्यायी से सुत्र दिया है । माहेश्वर सूत्र से प्रत्याहारों का विवरण, संधि को समझने की मूल बातें, संधि लगाने का गणितीय क्रमश, इन बातों से विद्यार्थियों के लीये अति प्रेरक व सुलभ पुस्तक तैयार की है ।
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