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यह कविताएँ कभी आप के कंधे पकड़ कर आप को झकझोरेंगी, कभी एक सम्वेदनशील मित्र बन कर आप के साथ दिन भर टहलेंगी, कभी शहर के सिरे को हल्के से उठाएँगी, कभी एक बादल बन कर आप के घर के ऊपर मँडराएँगी, और कभी एक रोशनी की किरण बन जाएँगी जो दूर एक सितारे से चल कर एक प्रश्न पूछना चाहती है।
Re: य र ल व श स ह
राजस्थान पत्रिका, सोमवार, 20 अगस्त, 2018, जयपुर
कविता संग्रह ‘य र ल व श स ह’ के लेखक सलिल चतुर्वेदी हिंदी-अंगेज़ी लेखन में अपना सुनिश्चित कोना बना चुके हैं और उनकी कहानियाँ ऐंटी-सीरीयस, इंदीयन लिटरेचर (साहित्य अकादमी), इंदीयन क्वॉर्टर्ली तथा आउट अव प्रिंट जैसी वरिष्ठ मैगज़ीन में छपती रही हैं। कथा kshetra क्षेत्र में उन्हें अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। सत्तावान पृष्ठों का यह कविता संग्रह अपनी भावनिष्ठ गहराई में हर पाठक की कई अनकही भावनाओं को छूता है। अपने सहज वाक्य विन्यास से सलिल ऐसे शब्द चित्र बनाते है जो हमें अनायास ही हिंदी साहित्य के पुरोधा अज्ञेय की याद दिला जाते है।
‘अब के चलेगी /हवा/हमारे लिए/जिसमें नालियों की बू ना होगी/भिखारियों की रूह ना होगी/
अनकटे पहाड़ों से होते हुए/एक साफ़ नदी की ठंडक उठाए/अब के चलेगी/हवा/हमारे लिए’ जैसी पंक्तियाँ भवानी मिश्र और निराला की सामाजिक चेतना को छूती हुई कवि को थोथी भावुकता से परे ले जाती हैं। कविता संग्रह की 50 कविताओं में हाइकु, नज़्म, गीत और अतुकांत शैलियाँ हैं जो सारी कविताओं को सहज प्रवाह देती हैं। कौवों की रेखाकृतियों को समोहे कविता संग्रह के पृष्ठ पाठक से गहरा सम्बंध बनाते हैं यह कहते हुए —
बुझ चले हैं शोले पर है तसल्ली
एक अंगारा अब भी जल रहा है
एक अजीब इत्तेफ़ाक है कि यहाँ हर इंसान
उगते उगते ढल रहा है
एक ख़ूबसूरत ख़्वाब देखा था कभी
कहीं गड़ा अंदर अब भी पल रहा है
कीमत की राशि बोझ नहीं लगती क्योंकि अपने सहज कथ्य में कवि पाठक के साथ खड़ा नज़र आता है इन चुनिंदा पंक्तियों के साथ — ‘खुला हूँ मैं/दुनिया के लिए/एक घाव की तरह’, ‘अंधेरी रात/तारे गिरे नदी में/एक के बाद एक’ और ‘क्यों गाए सदा/नीली चिड़िया/टूटी टहनी पर’।