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“मौन चीख़” सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि उन लाखों पुरुषों की दबाई हुई आवाज़ है जिनकी खामोशी को समाज अक्सर मजबूती समझकर नज़रअंदाज़ कर देता है।
अभय की यह कथा हर उस पुरुष का दर्द बयां करती है जो अपने परिवार, रिश्तों और जिम्मेदारियों के बोझ तले चुपचाप टूटता जाता है—बिना शिकायत, बिना आवाज़।
यह किताब सवाल उठाती है:
• क्या पुरुषों की भावनाएँ महत्व नहीं रखतीं?
• क्या घर-परिवार का बोझ सिर्फ़ एक पक्ष को उठाना चाहिए?
• क्या अपमान और चुप्पी किसी रिश्ते की नींव हो सकते हैं?
यह उपन्यास आपके भीतर तक हिला देगा—क्योंकि यह उन सच्चाइयों को उजागर करता है जिन पर कभी बात नहीं की जाती। अगर आपने कभी किसी पुरुष की आँखों में थकान या दर्द छुपा देखा है, तो यह किताब आपके दिल को गहराई से छू जाएगी।
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