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सबसे पहले बता दूँ की मैं कोई कहानीकार नहीं हूँ हर दिन दर्पण में भाव शून्य से चेहरे को देखता हूँ एक दिन दर्पण ने कुछ कहा और उसके महसूस किये शब्दों को सिर्फ कागज़ पर उकेर दिया इसीलिए ये कहानी संग्रह नहीं बल्कि कहानी दर्पण है और में इन्हे इसी नाम से पुकारता हूँ धरातल का वो उजला आईना जिससे हम मुख मोड़ते है जिस सच्चाई से हम वाकिफ होते हुए भी अनजान बने रहते है किताब में कुल 5 दर्पण है जिसमे एक दर्पण यथार्थ है जिसका साक्षी में स्वमं हूँ बाकि दर्पण यथार्थ ना सही परन्तु यथार्थ के उतना ही करीब जितना मन, श्रद्धा और विश्वास के इन उजले दर्पण को आपके स्नेहभरे नैनो से लक्षित आपके उज्जवल हाथो में रख रहा हूँ
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