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शीर्षक: "काश, मगर, शायद" – जहाँ दिल और कोड की दुनिया मिलती है
यह किताब सिर्फ़ कविता संग्रह नहीं है, बल्कि उस आधुनिक मन की दास्तान है जो डिजिटल लॉजिक और इंसानी जज़्बात के बीच संतुलन खोजता है।
हमारा जीवन तीन शक्तिशाली शब्दों के इर्द-गिर्द घूमता है:
वो 'काश' जो अधूरे सपनों और छूटे हुए मौकों की कसक है।
वो 'मगर' जो हर बड़ी चाहत के सामने एक शर्त बनकर खड़ा हो जाता है।
और वो 'शायद' जो हमें हर सुबह उठकर एक बेहतर कल की उम्मीद देता है।
लेखक सत्यप्रकाश, जो एक तरफ़ BCA के विद्यार्थी हैं और साइबर सिक्योरिटी की बारीकियों में उलझे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ इन तीन भावनाओं को अपनी शायरियों में पिरोते हैं। उनकी कविताएँ कोड की तरह सटीक हैं, मगर दिल की धड़कन की तरह ज़िंदा।
किताब में क्या है? यह संग्रह आपको रोज़मर्रा की ज़िंदगी की छोटी-छोटी दुविधाओं, प्रेम की अनकही बातों, और खुद की तलाश के सफ़र पर ले जाता है। यहाँ आप उन जज़्बातों को पाएंगे जिन्हें आपने कभी खुलकर बयाँ नहीं किया।
अगर आप एक ऐसी आवाज़ की तलाश में हैं जो आपकी उलझन और आपकी उम्मीद दोनों को महसूस कर सके, तो "काश, मगर, शायद" आपके लिए है।
इस किताब को उठाइए, और अपनी कहानी को पहचानिए।
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