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(1 Review)
Type: Print Book
Genre: Poetry
Language: Hindi
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Description

वो उर्दू का मुसाफिर है यही पहचान है उसकी
जिधर से गुज़रता है सलीक़ा छोड़ जाता है

उर्दू अदब की तारीख यूं तो बहुत तवील है हिन्दुस्तान की सरजमीं में पैदाइश से लेकर उर्दू अदब की बहुत सी अजीम शख्सियतें जिन्होंने उर्दू अदब को परवान चढ़ाया । और अपनी ख़िदमात से उर्दू अदब को फरोग दी। उर्दू की बहुत सी सिन्फें बनी। जो उर्दू को मुकम्मल ज़बान बनाती हैं और उर्दू अदब को हम तक पहुंचा रही हैं मगर उर्दू अदब की फरोग में जो मुक़ाम ग़ज़ल का है उस तक उर्दू की कोई दूसरी सिन्फ़ नहीं पहुंच पाई । ग़ज़ल(शेर -ओ-शायरी) के जरिए ही उर्दू की नश-ओ- नुमा ज़्यादा फरोग पायी । हिंदी, हिन्दवी, लश्क़री, ज़बान ए दिल्ली, रेख़्ता से उर्दू बनी इस ज़बान-ए-उर्दू में वो चाशनी मौजूद है जिसके जरिये वो आसानी से आवाम तक पहुंच जाती है और अपना बना लेती है उर्दू की एक ख़ासियत ये भी है की बात करने में जो खूबसूरती और वजन चाहिए होता है वो इसके लफ़्ज़ों में मौजूद है यही वजह है की हिंदुस्तान में पैदाइश के बाद से उर्दू आसानी से फ़रोग़ पाने लगी और अपना एक अलग मुक़ाम हासिल किया जो आज तक बरक़रार है।
यहाँ मैं अदना सा उर्दू अदब का तालिब-ए-इल्म आपकी ख़िदमत में उर्दू दुनिया से मुन्तख़ब अशआर का मजमुआ 'रू ब रू' करने की जसारत कर रहा हूँ। मैं नही जानता कि इसको पढ़ने के बाद आपका रद्दे अमल क्या होगा।मगर मेरी कोशिश रही है कि इस मजमुए में मौजूदा दौर की पसंद के मद्देनज़र उर्दू दुनिया के ख़ूबसूरत अशआर पिरो सकूँ। इस मजमुए मे हर मिजाज़, माहौल और कैफ़ियत के अशआर मौजूद हैं जो खासकर हालिया दौर में मन्ज़र-ए-आम पर नही आ सके । मगर जिन शायर हज़रात के शेर है काबिले दाद के मुस्तहिक़ हैं जो बार-बार हर दौर में दोहराये जाते है और महसूस कराते है कि जैसे दौरे हाज़िर में कहे गए हों।

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिये
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है -मीर

सलीके से हवाओं में जो ख़ुश्बू घोल सक हैं
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं - अज्ञात

किसी भी मंज़र, हालात, वाक़िये को दो मिसरों में समेट कर शायर कमाल करता है और उसी की नज़ीर उनके चुनिंदा अशआर आपके रू ब रू हैं जो यक़ीनन इस दुनिया से रब्त रखने वालों को ज़रूर गुदगुदायेंगे।

अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि हम उन के ही रू-ब-रू
बे-इख़्तियार उन्ही को पुकारे चले गए
शकील बदायुनी

हल्द्वानी (नैनीताल) संपादक
अक्टूबर-2022 शराफत अली खान ‘शांज़ल’

About the Author

शराफत अली खान ‘शांज़ल’ एक ऐसा नाम जो वादी-ए-उत्तराखण्ड में उर्दू की नरम व मुअत्तर किरणों का पासबान है। आप उर्दू अदब व सुख़न से ख़ास रग़बत व मुहब्बत के हामी हैं।
जिला नैनीताल के हल्द्वानी शहर में आपकी पैदाइश हुई। वालिद मरहूम फ़रहत अली खान से आपने इल्म व अदब की तालीम हासिल की तथा वालिदा मरहूम हफीज़ जहाँ से आपने दबिस्तान-ए-रामपुर की इम्तियाज़ी ख़ुसूसियात के साथ उर्दू जबान को विरासत में पाया। आला तालीम कुमाऊँ यूनिवर्सिटी नैनीताल से अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर तथा रुहेलखण्ड यूनिवर्सिटी से उर्दू जबान व अदब में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की।
ज़िला नैनीताल के साथ साथ पूरे उत्तराखण्ड प्रदेश में उर्दू अदब व सुख़न की तरक्की के लिए कई मुशायरों व उर्दू सम्मेलनों की महफ़िलों को मुनअक़िद करने की ख़िदमत को बखूबी अंजाम दे रहे हैं।
ABC Foundation व Lingua Franca तंज़ीम के ज़रिए हुकूमत-ए-हिन्द के कई उर्दू प्रोग्राम को फ़रोग दिया जा रहा है।

राब्ता:-
किदवई नगर, हल्द्वानी (नैनीताल) उत्तराखण्ड पिन-263139
+91 9012522200
Office. 05962-232302
E-mail: khan.shanzal@gmail.com
www.ultracreations.org

Book Details

ISBN: 9788194791539
Publisher: Ultra Creations
Number of Pages: 132
Dimensions: 6.00"x9.00"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

Ratings & Reviews

ROOBAROO

ROOBAROO

(5.00 out of 5)

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1 Customer Review

Showing 1 out of 1
fareedr 2 years ago

Excellent collection

निहायत ही खूब सूरत और एहसास से भरपूर चुनिंदा अशआर का संकलन ।

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