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इस कहानी में हम उस भविष्य की ओर जाते हैं, जहाँ ज्ञान इतना पूर्ण हो चुका है कि वह एक बोझ बन गया है। जहाँ सवाल पूछना मूर्खता नहीं, बल्कि आज़ादी का अंतिम प्रतीक माना जाने लगा है। जहाँ कुछ लोग जानबूझकर भूलने लगे, कुछ बगावत करने लगे और कुछ — जैसे ऋवा — एक नई मानवता की तलाश में निकल पड़े।
“सब जानने का श्राप” केवल विज्ञान कथा नहीं है। यह एक दार्शनिक यात्रा है — ज्ञान, विस्मृति, भावना और अनुभव के बीच मनुष्य को फिर से मनुष्य बनाने की यात्रा।
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