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शब्दों की सिसकी – एक काव्य संग्रह, जो समाज की अनकही सच्चाइयों, टूटते सपनों और इंसानी जज़्बातों को शब्दों में ढालता है। यह सिर्फ़ कविताओं का संग्रह नहीं, बल्कि समय की गूंज, व्यवस्था की चीख़ और आम आदमी की बेबस ख़ामोशी का दस्तावेज़ है।
इस किताब में आपको वो कहानियाँ मिलेंगी, जो अख़बारों में नहीं छपतीं, वो दर्द, जिनका कोई आँकड़ा नहीं होता, और वो सवाल, जिनका जवाब अक्सर इतिहास भी नहीं दे पाता। महँगाई, बेरोज़गारी, सरकारी सिस्टम, सामाजिक भेदभाव, राजनीति, विकास और आम नागरिक के संघर्ष—हर विषय पर ये कविताएँ गहरी चोट करती हैं।
सिर्फ़ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने के लिए है। यह आपको सोचने पर मजबूर करेगी और शायद आपके दिल में कुछ सवाल छोड़ जाएगी।
हर पंक्ति में छुपी एक सिसकी है—कभी प्रेम की, कभी विरह की, कभी उम्मीद की, कभी सामाजिक चेतना की, तो कभी जीवन के गहरे दर्शन की। शब्दों की सिसकी सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एहसासों की गूंज है, जो हर पाठक के दिल को छू जाएगी।
क्या आपको कभी लगा है कि शब्द भी रोते हैं?
अगर हाँ, तो यह किताब आपके लिए ही है।
Bahut sundar..
This is very important book for the today's new generations..
Very nice.. am so happy..