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श्री विद्या एक दिव्य और रहस्यपूर्ण यह एक ऐसा आध्यात्मिक मार्ग है जो आपको पराम्बा माँ भगवती ललिता महात्रिपुर सुंदरी से जोड़ता है और आंतरिक शांति व आत्मबोध का मार्ग प्रशस्त करता है। श्री विद्या दस महाविद्याओं में से एक है, जिसे षोडशी महाविद्या या त्रिपुरसुंदरी महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है। इस महाविद्या की अधिष्ठात्री देवी स्वयं माँ ललिता महात्रिपुरसुंदरी हैं।
श्री विद्या को सभी महाविद्याओं में सबसे विस्तृत और जटिल माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी साधना करने वाले साधक को सभी महाविद्याएं सिध्द हो जाती हैं, यथा काली, कमला, भुवनेश्वरी, मातंगी, और भैरवी। यह परंपरा गूढ़ अनुष्ठानों और शक्तिशाली मंत्रों से पूरित है, जो आपकी चेतना को जागृत कर ब्रह्मांड से एकीकार करने की क्षमता रखती है।
यह पुस्तक इन गहन साधनाओं को सरल और सहज अनुभागों में विभाजित करके प्रस्तुत करती है, जिससे इन्हें समझना और अपने जीवन में अपनाना सरल हो जाता है। सदियों से ये गूढ़ शिक्षाएँ एक गुप्त धरोहर के रूप में संरक्षित थीं और केवल कुछ ही लोगों को सुलभ थीं। लेकिन इस पुस्तक में, श्री विद्या की सबसे जटिल धारणाओं को अत्यंत सरलता से प्रस्तुत किया गया है कि निष्ठावान साधक उन्हें आसानी से समझ सके। चाहे आप साधना के मार्ग पर नए हों या अपनी साधना को और अधिक गहराई देना चाहते हों, इस पुस्तक में आपको मूल्यवान अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक मार्गदर्शन अवश्य मिलेगा।
इस पुस्तक में आप सीखेंगे-
1. तांत्रोक्त गुरु पूजन और दैनिक अनुष्ठान – गुरु पूजन की तांत्रिक विधि, दैनिक अनुष्ठान, शरीर, मन और आत्मा के शुद्धिकरण की विधि इस ग्रंथ में समाहित है। ये साधना के मूलभूत आधार हैं। हमारी परंपरा में तांत्रोक्त गुरु पूजन को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, और इसे प्रातःकाल सबसे पहले करना आवश्यक होता है।
2. संरक्षण विधियाँ – संरक्षक देवताओं के आह्वान की विधि भी इस पुस्तक में दी गई है।संरक्षक देवता आपको नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करते हैं, जिससे आपकी साधना सुचारू रूप से चलती रहे।
3. श्रीयंत्र पूजन – श्रीयंत्र ब्रह्मांड की परम दिव्य शक्ति का प्रतीक है। प्रस्तुत ग्रंथ में श्रीयंत्र पूजन की सांगोंपांग विधि दी गई हैं। इसके माध्यम से आप श्रीयंत्र के नव आवरणों में स्थित 180 देवताओं की उपासना कर सकेंगे।
4. पात्र साधन – पात्र साधन की जटिल और गुप्त विधियों को भी इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।
5. मंत्र और साधनाएँ – श्रीविद्या साधना के अंतर्गत प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न मंत्रों एवं आध्यात्मिक प्रक्रियाओं का विस्तृत ज्ञान दिया गया है।
6. अंतर्याग (आंतरिक ध्यान साधनाएँ) – श्रीविद्या साधनाएँ मुख्यतः बहिर्याग (बाह्य अनुष्ठान) और अंतर्याग (आंतरिक साधनाएँ) में विभाजित होती हैं। इस ग्रंथ में दोनों का समावेश है। श्रीयंत्र पूजन और पात्र साधन बहिर्याग में आते हैं। भूत शुद्धि (पांच तत्वों की शुद्धि), मातृकान्यास (अक्षरों की शक्ति का जागरण), आत्म-प्राण प्रतिष्ठा (आत्म-शक्ति का अभिषेक) जैसी प्रक्रियाएँ अंतर्याग के अंतर्गत आती हैं। इस पुस्तक में इन सभी विधियों को विस्तारपूर्वक समझाया गया है।
7. श्रीविद्या क्रम की अन्य साधनाएं – श्रीविद्या परंपरा में पूजित अन्य प्रमुख देवता जैसे महागणपति, मातंगी, भुवनेश्वरी और वराही की साधनाओं की विधि दी गई है। इसमें न्यास, मंत्र एवं ध्यान सम्मिलित हैं।
8. यज्ञ अनुष्ठान – अग्नि संस्कार आपके वातावरण को शुद्ध करते हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में इन यज्ञों की सही प्रक्रिया एवं उनसे जुड़े मंत्रों को विस्तार से दिया गया है।
गुरु का महत्व
यह ग्रंथ श्रीविद्या साधना के लिए एक मूल्यवान साधन है, यह गुरु के मार्गदर्शन का विकल्प नहीं हो सकता। आध्यात्मिक पथ, विशेष रूप से तंत्र मार्ग में, गुरु का होना अनिवार्य है। गुरु के बिना साधना में प्रगति करना कठिन होता है। साधक को प्रमाणिक गुरू परंपरा से जुड़े योग्य गुरू से दीक्षित होकर इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, यथा शंकराचार्य सम्प्रदाय।
आपकी आध्यात्मिक यात्रा
जब अनेक जन्मों के संचित पुण्य एक साथ उदित होते हैं, तब श्रीविद्या साधना में श्रद्धा जागृत होती है। इसके पश्चात, साधक गहन उत्कण्ठा से भगवान से प्रार्थना करता है, और भगवान् विश्वनाथ स्वयं उसका मार्गदर्शन करते हैं। वे गुरु के रूप में प्रकट होकर शक्तिपात द्वारा साधक को साधना के मार्ग में प्रवृत्त कर देते हैं। शनैः शनैः उसके सांसारिक राग, द्वेष और अन्य दोष दूर हो जाते हैं, और अंततः वह स्वरूप साक्षात्कार द्वारा कृतार्थ हो जाता है।इस साधना के माध्यम से भोग और योग दोनों की प्राप्ति होती है।
"श्रीसुन्दरी सेवन तत्पराणां भोगश्च योगश्च करस्थ एव।"
(जो श्रीसुंदरी की सेवा में तत्पर होते हैं, उनके लिए भोग और मोक्ष, दोनों ही उनके हाथ में होते हैं।)
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