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“कालचक्र को चलने दो” समय-चक्र की सतत् प्रवाहित अविरल धारा में
मन को सही राह पर साधते हुए काल की गति को स्वीकार करने का
आवाहन है। अकस्मात मन को झकझोर देने वाली परिस्थितियों से मन
को अत्यंत नकारात्मक रूप से प्रभावित होने से बचाने के लिए उन
परिस्थितियों को स्वीकार करना आवश्यक होता है जो अपने बस में नहीं
होती। जीवन कभी आसान रास्ता नहीं देता। हतोत्साहित करने वाले
कारकों और नकारात्मकता के जाल के बीच से जीवन को अंधेरे से
उजाले की ओर शांत मन से ले जाने की यात्रा का दर्शन काव्य रूप में
प्रस्तुत करती है यह पुस्तक।
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