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"तुम्हारी ग़ज़लें" - इक ऐसा सफ़र है मोहब्बत का, जिसमें वक़्त के साथ - साथ हमसफ़र भी बदलते गए। प्यार, इश्क़, मोहब्बत ने बारहा छुआ इस शायर के मंन को। पहली मोहब्बत के ना मिलने के मलाल ने इतना तोड़ दिया के खबर ही नहीं हुई के कब ख़ामोशी दिल में घर कर गयी और कब ख़ामोशी शायरी बन गयी।
मोहब्बत ने जब फिर करबट ली तो फिर वही अधूरापन था। और ये अधूरापन इस शायर की सोच को और भी गहरा करता गया।
अधूरी चाहतों ने कहीं ना कहीं इस शायर को इस कद्र तोड़ा है के वो आने वाली नस्लों के लिए कुछ यूँ फरमाते हैं -
"दिलों के सौदे यहाँ सोच - समझ के करना
वक़्त के तराज़ू में बड़े हेर - फेर हैं।"
उनकी मोहब्बत की दीवानगी, दर्द और शिद्दत का आलम ये शेर खूब बयाँ करते हैं -
"ज़हन से तुम्हारा उतरना अब कहाँ रहा मुमकिन
तुम्हारे बारे में हमने सोचा बहुत है ।"
"कहाँ जाएंं इस दिल को लेकर, जो तेरे
दामन - ए - ख्याल को छोड़ता भी नहीं।"
"उसके पाँव के लम्से-अव्वल को तरसे दर मेरा
वो कभी आए तो हो जाए मुहतरम घर मेरा।"
"हज़ार बार है डूबना गंवारा मुझे
तेरी आँख का अगर समंदर हो।"
"मुझ में अब भी तू कुछ बाकी है
मुझ से पूरी तरह तो बिछड़कर जाता।"
"अपने घर में भी करार नहीं मिलता
जब मनचाहा प्यार नहीं मिलता।"
"ना कह पाऊं तो मोहब्बत को जान झूठ मत जाना
कुछ एहसास ऐसे भी हैं जिन्हें लफ्ज़ नहीं मिलते।"
"रिहाई कहाँ ही मिलती होगी उन्हें, जो
ख्याल तेरी ज़ुल्फ़ से उलझा करते हैं।"
"इससे पहले के ये हिज़्र जान ही ले ले मेरी
बस्ल की कोई मुलाकात भी दे दे मुझे।"
"लौटा तो रहे हो तुम मेरा दिल लेकिन
दिल के लिए जज्बात भी दे दे मुझे।"
"एक बार नहीं बार - बार मर जाता हूँ
दिलासे तेरे आने के जब दिल को दिलाता हूँ।"
"ज़माने भर के सितम किए हैं मुझ पे तूने
फिर भी मेरे मन को तू अच्छी लगती है।"
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