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"तुम्हारी ग़ज़लें" - इक ऐसा सफ़र है मोहब्बत का, जिसमें वक़्त के साथ - साथ हमसफ़र भी बदलते गए। प्यार, इश्क़, मोहब्बत ने बारहा छुआ इस शायर के मंन को। पहली मोहब्बत के ना मिलने के मलाल ने इतना तोड़ दिया के खबर ही नहीं हुई के कब ख़ामोशी दिल में घर कर गयी और कब ख़ामोशी शायरी बन गयी।
मोहब्बत ने जब फिर करबट ली तो फिर वही अधूरापन था। और ये अधूरापन इस शायर की सोच को और भी गहरा करता गया।
अधूरी चाहतों ने कहीं ना कहीं इस शायर को इस कद्र तोड़ा है के वो आने वाली नस्लों के लिए कुछ यूँ फरमाते हैं -
"दिलों के सौदे यहाँ सोच - समझ के करना
वक़्त के तराज़ू में बड़े हेर - फेर हैं।"
उनकी मोहब्बत की दीवानगी, दर्द और शिद्दत का आलम ये शेर खूब बयाँ करते हैं -
"ज़हन से तुम्हारा उतरना अब कहाँ रहा...
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