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इस पुस्तक के बारे में
यह पुस्तक उन परंपराओं, रूढ़ियों और धार्मिक भ्रांतियों पर एक गहन विचार-विमर्श है, जो सदियों से समाज में व्याप्त हैं और असमानता, भेदभाव, घृणा और वैचारिक अशुद्धता को जन्म दे रही हैं। हमें बताया जाता है कि जो कुछ भी हमें परंपरा के नाम पर सौंपा गया है, वही अंतिम सत्य है। लेकिन क्या सच में ऐसा है? क्या धर्म का उद्देश्य मनुष्य को बांधना और डराना है, या उसे सत्य की खोज के लिए स्वतंत्र करना?
हमारे प्राचीन वेदांत, उपनिषद, गीता और अन्य ग्रंथों में जो वास्तविक ज्ञान छिपा है, वह हमें क्यों नहीं बताया जाता? क्यों धर्म के ठेकेदार उन रहस्यों को हमसे छिपाकर रखते हैं, जिनका उद्देश्य हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाना था? यह पुस्तक उन्हीं छिपी हुई सच्चाइयों को उजागर करने का प्रयास है।
इस ग्रंथ का उद्देश्य न केवल धर्म की आड़ में फैलाई गई रूढ़ियों का खंडन करना है, बल्कि मनुष्यों को उन संस्कारों और दमनकारी परंपराओं से मुक्त कराना भी है, जो सदियों से उनकी चेतना को जकड़े हुए हैं। यह एक आह्वान है उस भारत के पुनर्निर्माण का, जो ज्ञान, प्रेम और आत्मबोध की उच्चतम अवस्था पर था—जिसका मार्ग कभी कबीर, मीरा, शंकराचार्य जैसे संतों और ज्ञानियों ने प्रशस्त किया था।
हमें श्रीकृष्ण को केवल उनके पारिवारिक जीवन तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनके तत्वज्ञान, उनके विचारों और उनके द्वारा दिए गए जीवन के सत्य को आत्मसात करना चाहिए। यह पुस्तक उन गूढ़ रहस्यों की पड़ताल करती है, जो श्रीकृष्ण और अन्य महान संतों ने हमारे लिए छोड़े हैं—सत्य, प्रेम, ज्ञान और आत्मबोध की ओर बढ़ने के लिए।
यदि यह पुस्तक आपके विचारों को झकझोरती है, आपको सोचने पर मजबूर करती है, तो समझ लीजिए कि यह अपने उद्देश्य में सफल हो रही है।
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