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उन्नत समाजिक परिकल्पना में सांस्कृतिक सम्पन्नता के विशेष स्थान मानल जाइत अछि। मैथिली समाज के एहि दृष्टि स बहुत बेसी उन्नत मानल जाइया। मिथिला प्राचीन काल सS अपन सांस्कृतिक विरासत के अक्षुण्ण रखने अछि। लोकाचार बात-बिचार भाषा-लिपि पावनि-तिहार, गीत-नाद, चौल-उपराग आ बाकियो बहुत किछु छै। कोनो एहन विधा नई जाहि स हमर समाज बंचित रहल हो।
शहरीकरण और भौतिकतावादी एहि समय में सब से खराब स्थिति समाज में अही (सांस्कृतिक)पक्ष के भेल अइछ। समाज में व्याप्त आजुक होड में पलायनवादी प्रवृत्ति घर केने जा रहल अछि जहि सS सांस्कृतिक संरचना के उपेक्षा कयल जाइया। कतेको उदाहरण अईछ जे पावनि-तिहारक उपेक्षा करबा लेल आजुक नवका पीढ़ी विवश भS गेल छथि। एक मात्र छईठ पूजा के टेक रखने छवि बाहरो जा कS। बस। मधुश्रावणी, पंचमी, कोजगरा बरसाईत, सामा चकेबा, सन अनेको पावनि तिहार के बाहर रहनिहार व्यक्ति के परिवार में कोनो चर्चो नई भ पाबैया। अई कमी के हमरा सब के मिलिजुली...
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