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Type: Print Book
Genre: Literature & Fiction
Language: Hindi
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Description

"हिंदी साहित्य से सिनेमा तक" पुस्तक साहित्य और सिनेमा के गहरे और जटिल संबंधों पर आधारित एक प्रयास है, जो इस यात्रा को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है। हिंदी साहित्य और भारतीय सिनेमा दोनों ही हमारे समाज की आत्मा के दो सशक्त अभिव्यक्ति माध्यम रहे हैं। साहित्य जहां शब्दों के माध्यम से भावनाओं, विचारों और मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करता है, वहीं सिनेमा इन शब्दों को दृश्य और श्रव्य अनुभव में ढालकर व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने का काम करता है।
इस पुस्तक का उद्देश्य है हिंदी साहित्य और सिनेमा के बीच के उस सेतु को उजागर करना, जो न केवल दोनों विधाओं को जोड़ता है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक परिवर्तन और मनोरंजन के आयामों को भी परिभाषित करता है। यह पुस्तक उन कहानियों, पात्रों, और विचारधाराओं की चर्चा करती है, जिन्होंने साहित्य के पन्नों से निकलकर सिनेमा के पर्दे तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और भारतीय समाज को नई दृष्टि और दिशा दी।
साहित्य और सिनेमा का संबंध उन शुरुआती दिनों से जुड़ा है, जब मूक फिल्मों का दौर था। इस समय भारतीय सिनेमा ने भारतीय साहित्य, विशेषकर महाकाव्यों, जैसे रामायण और महाभारत, तथा लोककथाओं को अपनी फिल्मों का आधार बनाया। हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों की रचनाएं, जिनमें गोदान और शतरंज के खिलाड़ी जैसी कृतियां शामिल हैं, सिनेमा के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। 1931 में आई पहली सवाक फिल्म आलम आरा से लेकर आधुनिक सिनेमा तक, साहित्य ने फिल्मों की पटकथा, कथानक, और संवाद को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सिनेमा ने साहित्य के पात्रों को जीवंत किया है। उदाहरण के लिए, देवदास का चरित्र, जिसे शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने रचा था, सिनेमा में बार-बार उभरता है और हर बार एक नई दृष्टि और संवेदना लेकर आता है। गाइड जैसी फिल्म, जो आर. के. नारायण के उपन्यास पर आधारित है, साहित्यिक मूल्यों और सिनेमा की कलात्मकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है। इसी प्रकार, प्रेमचंद के पात्र होरी और धनिया को जब फिल्म के माध्यम से प्रस्तुत किया गया, तो वे एक बड़े दर्शक वर्ग के दिलों तक पहुंचे।
साहित्य हमेशा सीमित पाठकों तक ही पहुंच पाता है, लेकिन सिनेमा ने इसे व्यापक दर्शकों तक ले जाने का काम किया है। उदाहरण के लिए, मालगुडी डेज़ जैसे साहित्यिक कृत्य को टीवी धारावाहिक के रूप में ढाला गया और यह घर-घर में लोकप्रिय हो गया। इसी तरह, मृदुला गर्ग, निर्मल वर्मा, और हरिवंश राय बच्चन जैसे लेखकों की रचनाओं ने सिनेमा और टीवी के माध्यम से अपनी पहचान बनाई।
हिंदी सिनेमा में साहित्यिक रचनाओं पर आधारित फिल्मों की एक अलग शैली रही है। सत्यजीत रे जैसे फिल्मकार, जो मुख्य रूप से बांग्ला साहित्य पर आधारित फिल्में बनाते थे, ने भारतीय सिनेमा को साहित्यिक और कलात्मक ऊंचाई प्रदान की। हिंदी सिनेमा में बिमल रॉय, गुरु दत्त और श्याम बेनेगल जैसे फिल्मकारों ने साहित्यिक रचनाओं को फिल्मों के माध्यम से प्रस्तुत किया। इनकी फिल्मों में साहित्य की गहराई और सिनेमा की भव्यता का अनूठा समागम देखने को मिलता है।
समय के साथ, साहित्य और सिनेमा का संबंध भी बदला है। अब सिनेमा केवल साहित्य को रूपांतरित करने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह साहित्य को प्रेरित करने लगा है। आधुनिक फिल्मों और वेब सीरीज ने भी साहित्य को नई दिशा दी है। उदाहरण के लिए, अमीश त्रिपाठी के शिव ट्राइलॉजी जैसे साहित्यिक कृत्य को सिनेमा और वेब सीरीज में परिवर्तित करने की योजनाएं बन रही हैं।
हिंदी सिनेमा ने हिंदी साहित्य को एक नई पहचान दी है। जहां साहित्य ने शुद्ध और काव्यात्मक भाषा का प्रयोग किया, वहीं सिनेमा ने आम बोलचाल की भाषा को अपनाकर इसे जनसामान्य के करीब ला दिया। साहित्य के काव्यात्मक संवाद जब पर्दे पर बोले जाते हैं, तो उनका प्रभाव और भी गहरा हो जाता है।
"हिंदी साहित्य से सिनेमा तक" न केवल साहित्य और सिनेमा के बीच के संबंधों का अध्ययन है, बल्कि यह पाठकों को यह समझाने का प्रयास भी है कि ये दोनों विधाएं कैसे एक-दूसरे को समृद्ध करती हैं। यह पुस्तक उन पाठकों और दर्शकों के लिए है, जो साहित्य और सिनेमा के प्रति रुचि रखते हैं और इन माध्यमों के गहरे प्रभाव को समझना चाहते हैं।
इस पुस्तक के माध्यम से, पाठक साहित्य और सिनेमा के अद्भुत संसार में प्रवेश करेंगे और उन कहानियों, पात्रों, और विचारधाराओं को समझ पाएंगे, जिन्होंने हमारे समाज और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है।

संपादक द्वय

About the Authors

संपादक परिचय
मेरा नाम कर्तिक मोहन डोगरा है। मैं इतिहास में स्नातक और हिंदी में स्नातकोत्तर अध्ययन से सम्मानित हूँ। मैंने अपनी शिक्षा अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली से सफलतापूर्वक पूर्ण की है।
अपने स्नातकोत्तर अध्ययन के दौरान, मैंने नज़ीर अकबराबादी और आगरा बाज़ार पर अपने शोध-प्रबंध (डिसर्टेशन) का अध्ययन किया। यह अनुसंधान मुझे यह समझने में मदद करता है कि इतिहास और साहित्य हमारे समाज के मूल्यों और विचारधारा को किस प्रकार परिभाषित करते हैं।
वर्तमान में, मैंने महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी, बड़ौदा (हिंदी विभाग) से हिंदी विषय में पीएचडी शुरू की है।
इसके अतिरिक्त, मैंने अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित किए हैं। इन लेखों के विषय विविध हैं, जिनमें शामिल हैं:
• प्रवासी साहित्य
• रस दर्शन और दिग्दर्शन
• राहुल सांकृत्यायन
• सत्ता, साहित्य और दिल्ली
• उपनिवेशवादी आर्थिक चिंतन की विशेषताएं
• भारतेन्दु युगीन पत्रकारिता का योगदान
संपर्क सूत्र:
• मोबाइल: 8920458350
• ईमेल: kartikdogra.18@gmail.com


संपादिका परिचय
डॉ. राजश्री लक्ष्मण तावरे
यह परिचय एक प्रतिभावान और प्रेरणादायक साहित्यकार के जीवन और उपलब्धियों का परिचायक है। उनका जन्म 1 मार्च 1985 को महाराष्ट्र के बीड जिले के पाली नामक स्थान पर हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अद्वितीय उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने हिंदी विषय में एम.ए. और बी.एड. की उपाधि प्राप्त की है, साथ ही नेट (हिंदी), नेट-जेआरएफ, और पी.एचडी. जैसी उच्चतम शैक्षणिक योग्यताएं अर्जित की हैं, जो उनकी विद्वता और समर्पण को दर्शाती हैं।
साहित्यिक क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय और बहुआयामी है। उनके द्वारा प्रकाशित रचनाओं में विविध विधाओं का समावेश है। उनकी पहली काव्य संग्रह "एहसासों के झरोखों से" वर्ष 2016 में प्रकाशित हुई, जिसमें उनकी भावनाओं और विचारों का गहन अभिव्यक्ति दिखाई देती है। इसके बाद, 2018 में प्रकाशित "हिंदी साहित्य में नयी स्त्री: विविध आयाम" ने हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श को एक नई दिशा दी। उसी वर्ष, उन्होंने "उष:काल" नामक स्मारिका का संपादन किया, जो उनकी संपादन क्षमता का प्रमाण है। वर्ष 2019 में प्रकाशित "हिंदी और मराठी साहित्य में नए साहित्यिक प्रवाह" शीर्षक पुस्तक ने हिंदी और मराठी साहित्य के समकालीन प्रवाहों पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में 35 से अधिक आलेख प्रकाशित किए हैं, जो उनके गहन शोध और चिंतनशील लेखन को दर्शाते हैं।
उनकी साहित्यिक प्रतिभा और योगदान को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्हें भगवान महाराज सार्वजनिक वाचनालय बीड द्वारा काव्यरत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, सावित्रीबाई फुले सार्वजनिक वाचनालय बीड ने उन्हें साहित्य भूषण पुरस्कार प्रदान किया, जो उनके साहित्यिक योगदान की व्यापक स्वीकृति को दर्शाता है।
साहित्य के क्षेत्र में अपनी अभूतपूर्व सेवाओं के साथ-साथ वे शैक्षणिक क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। वर्तमान में वे महाराष्ट्र के धाराशिव जिले में स्थित शंकरराव पाटील महाविद्यालय, भूम के हिंदी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। उनकी विद्वता, शिक्षण कौशल और लेखन क्षमता छात्रों और साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
उनके जीवन और कार्यों से यह स्पष्ट है कि वे एक ऐसे साहित्यकार और शिक्षक हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी रचनाएं और शोध न केवल साहित्यिक विमर्श को समृद्ध करते हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित भी करते हैं। उनके लेखन में सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ और मानवीय संवेदनाओं का स्पर्श देखने को मिलता है। उनका योगदान साहित्य और शिक्षा दोनों क्षेत्रों में अनुकरणीय और प्रेरणादायक है।
संपर्क : 9225599106,
E-mail : tawarerajshree@gmail.com

Book Details

ISBN: 9788198235350
Publisher: Sjain Publication
Number of Pages: 88
Dimensions: 5.50"x8.50"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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हिन्दी साहित्य से सिनेमा तक

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