Ratings & Reviews

तुम्हें भूलने की कोशिश

तुम्हें भूलने की कोशिश

(5.00 out of 5)

Review This Book

Write your thoughts about this book.

1 Customer Review

Showing 1 out of 1
Sumanrakesh 9 months, 1 week ago

उत्तम रचना

इन दिनों ज्योति त्रिपाठी "रुचि" की पुस्तक "तुम्हें भूलने की कोशिश" पढ़ी।वैसे तो इक्का-दुक्का कविताएँ उनकी वॉल पर पहले भी पढ़ चुकी थी लेकिन नये कलेवर (पुस्तक रूप में देखकर)फिर से वही कविता नयी-नयी लगी।प्रेम का वर्णन करना -वह भी जब जीवन में करने ही नहीं दिया हो दिल की गहराइयों तक स्पर्श कर गया।
बहुत प्यारी-प्यारी कवितायें हैं बावरे मन की हर भावनाओं,संवेदनाओं को स्पर्श करती हुई। "तुम नहीं समझोगी/तुम नही समझोगे की दुहाई देते हुए------- न हम साथ हैं,न हम पास हैं प्रेम ठहरा हुआ है एक निश्चित कवायद की आस में।"
मैं समर्पित हूँ चंद उन ख्वाबों के लिये, जो अभी तक बंजर आँखों में उगाये ही नहीं गये हैं।इतने समर्पण के बाद भी भूलने की कोशिश?
पुस्तक की प्रत्येक कविता मन को छू जाती है।
तमाम शुभकामनाओं के साथ कि आगे भी इसी प्रकार हमें श्रेष्ठ लेखन पढ़ने को मिलता रहेगा।