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यह पुस्तक केवल उन लेखकों और उपन्यासकारों की जीवनियों का संकलन मात्र नहीं है, जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि यह उन कालखंडों का जीवंत दस्तावेज है जिनके वे निष्ठावान प्रतिनिधि थे। ये साहित्यकार मात्र व्यक्ति नहीं थे, अपितु अपने-अपने युग की आत्मा, उसकी धड़कन और उसके विचारों के प्रबल वाहक थे। उनकी जीवनियाँ केवल उनके जन्म, शिक्षा, साहित्यिक यात्रा और देहावसान की तथ्यात्मक जानकारी तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि ये उस विशिष्ट समय के गहन सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक विस्तृत और सूक्ष्म प्रतिबिंब प्रस्तुत करती हैं। ये जीवनियाँ हमें उस दौर के रीति-रिवाजों, विश्वासों, संघर्षों, परिवर्तनों और आकांक्षाओं को समझने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करती हैं।
प्रत्येक महान लेखक अपने समय की परिस्थितियों, चुनौतियों और संभावनाओं से गहरा प्रभावित होता है। उसकी रचनाएँ केवल कल्पना की उड़ान नहीं होतीं, बल्कि वे उस युग के बोध, उसकी पीड़ा, उसके स्वप्नों और उसकी आकांक्षाओं की सटीक अभिव्यक्ति होती हैं। उदाहरण के लिए, प्रेमचंद की कहानियों में किसान और मजदूर वर्ग की दयनीय दशा, शोषण के विरुद्ध संघर्ष और मानवीय संवेदना की पराकाष्ठा स्पष्ट झलकती है, जो उस समय के ग्रामीण भारत की कड़वी सच्चाई थी। जयशंकर प्रसाद का लेखन भारतीय इतिहास और संस्कृति के स्वर्णिम अतीत का गौरव गान करता है, जो तत्कालीन राष्ट्रीय जागरण और सांस्कृतिक पुनरुत्थान से प्रेरित था। अज्ञेय का व्यक्तिवादी दर्शन आधुनिक जीवन के अकेलेपन, अस्तित्त्व के प्रश्नों और आंतरिक स्वातंत्रय की खोज को दर्शाता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक निराशा और वैचारिक उथल-पुथल की उपज थी, जबकि निर्मल वर्मा की कहानियों में आधुनिकता बोध, विस्थापन और शहरी जीवन की विसंगतियाँ मुखर होती हैं। ये सभी उनके व्यक्तिगत जीवन अनुभवों, वैचारिक यात्रा और तत्कालीन सामाजिक-साहित्यिक वातावरण की गहन उपज थे। इस पुस्तक में प्रस्तुत जीवनियाँ पाठक को केवल इन साहित्यकारों से ही नहीं, बल्कि उस विशिष्ट कालखंड की जटिल समस्याओं, तीव्र संघर्षों, आदर्शों और अनकही आकांक्षाओं से भी साक्षात परिचित कराती हैं, जिससे पाठक का युग-बोध और साहित्यिक चेतना दोनों समृद्ध होते हैं।
जीवनियाँ केवल "क्या लिखा गया" यह नहीं बतातीं, बल्कि वे लेखक की रचनात्मकता के मूल तक पहुँचकर "क्यों लिखा गया" और "कैसे लिखा गया" की गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। ये हमें साहित्यकार के आंतरिक द्वंद्व – उसके व्यक्तिगत सुख-दुख, आशा-निराशा, संघर्ष और समझौता – से परिचित कराती हैं, जो उसकी रचनाओं का मूल प्रेरणा स्रोत बनते हैं। लेखन की विविध शैलियाँ, भाषा के साथ उनके अद्वितीय प्रयोग, कथ्य और शिल्प के अभिनव प्रयोग – ये सभी पहलू उनकी जीवनी के माध्यम से ही जीवंत होकर पाठक के समक्ष अनावृत होते हैं। यह पुस्तक पाठक को केवल कृति का रसास्वादन करने का अवसर नहीं देती, बल्कि उसे लेखक के साथ उसकी सृजन प्रक्रिया में एक सक्रिय भागीदार बनने का अनुपम अवसर भी प्रदान करती है, जहाँ वह रचना के जन्म से लेकर उसके पूर्ण रूप लेने तक की यात्रा का साक्षी बन पाता है।
हिंदी साहित्य का इतिहास विभिन्न कालों में विकसित हुए अनेक साहित्यिक आंदोलनों और वादों (जैसे छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कहानी, अकविता आदि) से भरा पड़ा है। इन आंदोलनों के सूत्रधार और प्रमुख लेखक कौन थे, उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि और दार्शनिक आधार क्या था, और उन्होंने साहित्य की दिशा को किस प्रकार मौलिक रूप से बदला, यह सब उनकी जीवनियों के माध्यम से अत्यंत स्पष्ट और प्रामाणिक रूप से उभर कर सामने आता है। यह पुस्तक इन साहित्यकारों के जीवन को केंद्र में रखकर हिंदी साहित्य के इतिहास को केवल कालक्रमानुसार नहीं, बल्कि व्यक्तियों के माध्यम से, उनके विचारों और संघर्षों के माध्यम से समझने का एक नवीन और जीवंत मार्ग प्रशस्त करती है। इस प्रकार, यह पुस्तक केवल जीवनियों का संग्रह न होकर, हिंदी साहित्य और उसके युग की एक समग्र और गतिशील व्याख्या प्रस्तुत करती है।
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