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हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखक

डॉ. लाला प्रवीण कुमार सिन्हा
Type: Print Book
Genre: Education & Language
Language: Hindi
Price: ₹340 + shipping
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Description

यह पुस्तक केवल उन लेखकों और उपन्यासकारों की जीवनियों का संकलन मात्र नहीं है, जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि यह उन कालखंडों का जीवंत दस्तावेज है जिनके वे निष्ठावान प्रतिनिधि थे। ये साहित्यकार मात्र व्यक्ति नहीं थे, अपितु अपने-अपने युग की आत्मा, उसकी धड़कन और उसके विचारों के प्रबल वाहक थे। उनकी जीवनियाँ केवल उनके जन्म, शिक्षा, साहित्यिक यात्रा और देहावसान की तथ्यात्मक जानकारी तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि ये उस विशिष्ट समय के गहन सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक विस्तृत और सूक्ष्म प्रतिबिंब प्रस्तुत करती हैं। ये जीवनियाँ हमें उस दौर के रीति-रिवाजों, विश्वासों, संघर्षों, परिवर्तनों और आकांक्षाओं को समझने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करती हैं।
प्रत्येक महान लेखक अपने समय की परिस्थितियों, चुनौतियों और संभावनाओं से गहरा प्रभावित होता है। उसकी रचनाएँ केवल कल्पना की उड़ान नहीं होतीं, बल्कि वे उस युग के बोध, उसकी पीड़ा, उसके स्वप्नों और उसकी आकांक्षाओं की सटीक अभिव्यक्ति होती हैं। उदाहरण के लिए, प्रेमचंद की कहानियों में किसान और मजदूर वर्ग की दयनीय दशा, शोषण के विरुद्ध संघर्ष और मानवीय संवेदना की पराकाष्ठा स्पष्ट झलकती है, जो उस समय के ग्रामीण भारत की कड़वी सच्चाई थी। जयशंकर प्रसाद का लेखन भारतीय इतिहास और संस्कृति के स्वर्णिम अतीत का गौरव गान करता है, जो तत्कालीन राष्ट्रीय जागरण और सांस्कृतिक पुनरुत्थान से प्रेरित था। अज्ञेय का व्यक्तिवादी दर्शन आधुनिक जीवन के अकेलेपन, अस्तित्त्व के प्रश्नों और आंतरिक स्वातंत्रय की खोज को दर्शाता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक निराशा और वैचारिक उथल-पुथल की उपज थी, जबकि निर्मल वर्मा की कहानियों में आधुनिकता बोध, विस्थापन और शहरी जीवन की विसंगतियाँ मुखर होती हैं। ये सभी उनके व्यक्तिगत जीवन अनुभवों, वैचारिक यात्रा और तत्कालीन सामाजिक-साहित्यिक वातावरण की गहन उपज थे। इस पुस्तक में प्रस्तुत जीवनियाँ पाठक को केवल इन साहित्यकारों से ही नहीं, बल्कि उस विशिष्ट कालखंड की जटिल समस्याओं, तीव्र संघर्षों, आदर्शों और अनकही आकांक्षाओं से भी साक्षात परिचित कराती हैं, जिससे पाठक का युग-बोध और साहित्यिक चेतना दोनों समृद्ध होते हैं।
जीवनियाँ केवल "क्या लिखा गया" यह नहीं बतातीं, बल्कि वे लेखक की रचनात्मकता के मूल तक पहुँचकर "क्यों लिखा गया" और "कैसे लिखा गया" की गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। ये हमें साहित्यकार के आंतरिक द्वंद्व – उसके व्यक्तिगत सुख-दुख, आशा-निराशा, संघर्ष और समझौता – से परिचित कराती हैं, जो उसकी रचनाओं का मूल प्रेरणा स्रोत बनते हैं। लेखन की विविध शैलियाँ, भाषा के साथ उनके अद्वितीय प्रयोग, कथ्य और शिल्प के अभिनव प्रयोग – ये सभी पहलू उनकी जीवनी के माध्यम से ही जीवंत होकर पाठक के समक्ष अनावृत होते हैं। यह पुस्तक पाठक को केवल कृति का रसास्वादन करने का अवसर नहीं देती, बल्कि उसे लेखक के साथ उसकी सृजन प्रक्रिया में एक सक्रिय भागीदार बनने का अनुपम अवसर भी प्रदान करती है, जहाँ वह रचना के जन्म से लेकर उसके पूर्ण रूप लेने तक की यात्रा का साक्षी बन पाता है।
हिंदी साहित्य का इतिहास विभिन्न कालों में विकसित हुए अनेक साहित्यिक आंदोलनों और वादों (जैसे छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कहानी, अकविता आदि) से भरा पड़ा है। इन आंदोलनों के सूत्रधार और प्रमुख लेखक कौन थे, उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि और दार्शनिक आधार क्या था, और उन्होंने साहित्य की दिशा को किस प्रकार मौलिक रूप से बदला, यह सब उनकी जीवनियों के माध्यम से अत्यंत स्पष्ट और प्रामाणिक रूप से उभर कर सामने आता है। यह पुस्तक इन साहित्यकारों के जीवन को केंद्र में रखकर हिंदी साहित्य के इतिहास को केवल कालक्रमानुसार नहीं, बल्कि व्यक्तियों के माध्यम से, उनके विचारों और संघर्षों के माध्यम से समझने का एक नवीन और जीवंत मार्ग प्रशस्त करती है। इस प्रकार, यह पुस्तक केवल जीवनियों का संग्रह न होकर, हिंदी साहित्य और उसके युग की एक समग्र और गतिशील व्याख्या प्रस्तुत करती है।

About the Author

हिंदी और अंग्रेजी विषय से एमए किये डॉ. लाला प्रवीण कुमार सिन्हा ने अपनी अकादमिक यात्रा की शुरुआत 1988 से अंगीभूत इकाई राजेंद्र मिश्र महाविद्यालय सहरसा से की, तत्पश्चात सहरसा के प्रतिष्ठित एमएलटी सहरसा महाविद्यालय के हिंदी विभाग में 2010 में इनका स्थानांतरण हो गया, अपने लंबे कार्यकाल के दौरान इन्होंने वर्षों तक छात्रों को हिंदी भाषा और साहित्य का गहन ज्ञान प्रदान किया। बतौर सह-प्राध्यापक के रूप में, इन्होंने न केवल पठन-पाठन में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है, बल्कि अकादमिक गतिविधियां, शोध कार्यों और विभाग के समग्र विकास में भी इनके द्वारा सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया गया है। डॉ. लाला प्रवीण कुमार सिन्हा एक प्रतिबद्ध शिक्षाविद, कुशल प्रशासक और संवेदनशील लेखक तो हैं, ही साथ ही पत्रकारिता में भी इनकी गहन अभिरुचि रही है तथा प्रांतीय एवं राष्ट्रीय स्तर के कई समाचार पत्रों मसलन दैनिक जागरण, हिंदुस्तान राष्ट्रीय सहारा, आज अखबारों में अंशकालिक संवाददाता के तौर पर भी इन्होंने कार्य किया है, बिहार सरकार द्वारा इन्हें मान्यता प्राप्त संवाददाता का दर्जा भी कई दफा दिया जा चुका है, अपने लेखन की शुरुआत इनके द्वारा किशोरावस्था में ही की जा चुकी थी तथा वर्ष 1984 से ही इनकी रचनाओं का प्रकाशन कई अखबारों एवं प्रतियोगिता दर्पण आदि पत्र पत्रिकाओं में होना प्रारंभ हो गया था और यह सिलसिला फिलवक्त भी कायम ही है, महाविद्यालय से प्रकाशित होने वाले पत्रिका में भी इनका विशेष योगदान रहा करता है, सामाजिक कार्यों में भी इनकी गहन अभिरुचि रही है, तथा कई सामाजिक संगठनों से भी ये जुड़े हुए हैं।
फिलहाल वर्ष जून 2024 से भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय अंतर्गत के स्नातकोत्तर केंद्र, पश्चिमी परिसर सहरसा में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में इनकी नई भूमिका की शुरुआत हुई है और अपने अल्प कार्यकाल के दौरान ही इन्होंने विभाग का कायाकल्प कर दिया है, इस दौरान विभाग में कई सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों को आमंत्रित किया गया जो इनके हिंदी शिक्षा और साहित्य के प्रति गहरे समर्पण एवं लगाव का दिग्दर्शन कराता है। इनके अकादमिक कुशल नेतृत्व और साहित्यिक अभिरुचि निश्चित रूप से आने वाले समय में हिंदी भाषा, साहित्य और शोध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देगी , जिससे नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी।

Book Details

ISBN: 9788198594815
Publisher: आर. सी. आई. टी.
Number of Pages: 161
Dimensions: A5
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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