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भूमिका
साहित्य- संगीत- कला विहीन:। साक्षात् पशु पुच्छ विषाणहीन:।।
अर्थात् साहित्य ,संगीत और कला से रहित व्यक्ति तो साक्षात् बिना सींग पूंछ का पशु ही है। ऐसे में भला मानव और पशु में अंतर क्या रह जाएगा? आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में आम पाठक कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जनरंजक सामग्री चाहता है। इसे ही लक्ष्य कर पाठकों के अनुरूप मैंने इस लघुकथा संग्रह "कथा- मंजरी भाग- 1" में आठ लघु कथाओं को शामिल किया है। मेरा दृष्टिकोण सदा ही "आओ प्रकृति की ओर लौटें" रहा है। धरती हमारी मां है और हम उसकी लाडली संतानें। ऐसे में हमें धरती मां के पुत्र होने का धर्म भी निभाना है।
प्रकृति- संरक्षण और जीवों के प्रति दया भाव इस लघु कथा संग्रह का मुख्य उद्देश्य है।
" उड़ता पंछी खिलते चेहरे "कथा में कबूतर के संरक्षण का संदेश है तो वहीं दूसरी रचना "शायरी वाले बाबा की सीख" कथा में कला संरक्षण को स्थान दिया है। इसी प्रकार "बरगद बाबा" कथा में वटवृक्ष को बचाने तथा "दशहरा पटाखों का" कथा में पटाखों से प्रदूषण न फैलाने की सीख दी गई है।" समय की सीख" कथा नाम से ही प्रसिद्ध है जिसमें एक साधारण परिवार द्वारा एक राहगीर की मदद की गई है। " धरा की पुकार" में धरती को बचाने का संदेश दिया है वहीं "आत्मसम्मान" और "शेरू" जैसी रचनाएं भी पठनीय हैं साथ ही इन रचनाओं में रचनाकार का एक गहरा दर्द भी छिपा है। रचनाकार जब-जब अपनी रचना करता है तो उसके इर्द-गिर्द का परिवेश कथाकार की रचनाओं में स्पष्टत: परिलक्षित होता है। आशा है आम पाठकों को ये लघुकथाएं पसंद आएंगी साथ ही इन रचनाओं में छिपे प्रकृति- संरक्षण को भी हम आत्मसात् कर पाएंगे ।
मानव स्वभाववश त्रुटियां रह जाना स्वाभाविक है। ऐसे में विद्वज्जनों और साहित्यकारों से विनम्र प्रार्थना है कि वे हमारा पथ- प्रदर्शन की कृपा रहेंगे। परम पूज्या माता श्रीमती यमुना देवी जी तथा स्व.पूज्यपाद पिताश्री स्वर्गीय पंडित श्री लक्ष्मी नारायण जी शर्मा के आत्मविश्वास एवं शुभ आशीर्वाद का ही तो प्रतिफल है यह लघुकथा संग्रह ।इस सारस्वत कार्य को ऑनलाइन तकनीकी माध्यम से पाठकों तक पहुंचाने में चि. पुत्र सौम्य शर्मा का योगदान तो उल्लेखनीय है ही मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सरिता जी शर्मा और पुत्र प्रियांशु शर्मा को भी साधुवाद। इस कथा संग्रह का आगामी भाग भी शीघ्र ही पाठकों को पढ़ने को मिलेगा ।
गच्छत: स्खलनं क्वापि
- डॉ .शंकर लाल शास्त्री
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