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यह सच है
हार हार मैं गया,
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उड़ी धूल तन सारा भर गया
वही फूल, जीवन अविकच है
यह सच है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
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