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“चौराहे पर कृष्ण” का पुन: प्रकाशन
कवि छोटी सी कविता में महाकाव्य रच देता है या फिर एक विशाल महाकाव्य को अपनी एक छोटी-सी कविता में समाहित कर लेता है । कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण ऐसे ही एक कवि हैं जिन्होंने महाभारत में निहित श्री कृष्ण के संपूर्ण व्यक्तित्व को, उनकी संपूर्ण क्रियाकलाप को, उनकी संपूर्ण चिंतन को एक लम्बी कविता में समाहित कर एक युग से गुजारते हुए दूसरे युग में लाकर खड़ा कर दिया है । महाभारत-कालीन आदि कवि व्यास ने जहां लाकर श्री कृष्ण को मुक्त कर दिया था वहीं से उठाकर आधुनिक कवि पाषाण "चौराहे पर कृष्ण" में उनको प्रश्नों के कठघरे में उनकी सम्पूर्ण मर्यादा सहित खड़ा करते हैं और उनसे वर्तमान की समस्याओं का हल मांगते हैं । ऐसे प्रश्न उठाने से पहले कवि पाषाण स्वयं कृष्ण की पीड़ा से गुजरते हैं, रोम-रोम से उसका अनुभव करते हैं और ऐसी परिस्थितियों से स्वयं को संभालते हुए मानव की वर्तमान पीड़ा को अपनी कविता में व्यक्त करते हैं । संवेदना के स्तर पर कवि पाषाण कई कालखंडों से ऊपर उठकर अन्तरिक्षीय दृष्टिकोण से समस्या को अवलोकन करने की भरसक कोशिश करते हैं । इसमें उन्होंने कहां तक सफलता हासिल की है यह तो कोई संवेदनशील पाठक ही बता सकता है। पाषाण जी कृष्ण को पारंपरिक दृष्टिकोण से हटकर शासन और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग के हित में एक निरंतर संघर्षशील मानव के रूप में ही व्यक्त करना उचित समझते हैं ।
1993 में प्रथम प्रकाशित इस ग्रंथ की प्रतियां उपलब्ध नहीं थीं, यह डिजिटल ई-बूक और प्रिंट मिडिया में एक साथ पुनः प्रकाशित हो रहा है, यह जानकार बहुत हर्ष हो रहा है। साहित्य-समाज को इसके लिए बधाई।
- सत्य प्रकाश भारतीय 30-07-2022
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