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यह पुस्तक, पुराणों से मिलते-जुलते रूप में, आध्यात्मिक-वैज्ञानिक प्रकार का अपूर्व उपन्यास है। यह एक आध्यात्मिक-भौतिक प्रकार की मिश्रित कल्पना पर आधारित है। यह हमारे शरीर में प्रतिक्षण हो रहे भौतिक व आध्यात्मिक चमत्कारों पर आधारित है। यह दर्शन हमारे शरीर का वर्णन आध्यात्मिकता का पुट देते हुए पूरी तरह से चिकित्सा विज्ञान के अनुसार करता है। इसीलिए यह आम जनधारणा के अनुसार नीरस चिकित्सा विज्ञान को बाल-सुलभ सरल व रुचिकर बना देता है। यह पाठकों की हर प्रकार की आध्यात्मिक व भौतिक जिज्ञासाओं को शाँत करने में सक्षम है। यह सृष्टि में विद्यमान प्रत्येक स्तर की स्थूलता व सूक्ष्मता को एक करके दिखाता है, अर्थात यह द्वैताद्वैत की ओर ले जाता है। यह दर्शन एक उपन्यास की तरह ही है, जिसमें भिन्न- भिन्न अध्याय नहीं हैं। इसे पढ़कर पाठकगण चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, शरीर की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं; वह भी रुचिकर, प्रगतिशील व आध्यात्मिक ढंग से। इस पुस्तक में शरीर में हो रही घटनाओं का, सरल व दार्शनिक विधि से वर्णन किया गया है। इस पुस्तक को शरीरविज्ञान दर्शन~ एक आधुनिक कुंडलिनी तंत्र [एक योगी की प्रेमकथा] नामक मूल पुस्तक से लिया गया है। कुछेक पाठकों ने कहा कि इस पुस्तक में बहुत से विषय एकसाथ हैं, इसलिए कुछ भ्रम सा पैदा होता है। कई लोग लंबी पुस्तक नहीं पढ़ना चाहते, और कई किसी एक ही विषय पर केन्द्रित रहना चाहते हैं। हमने मूल पुस्तक से छेड़छाड़ करना अच्छा नहीं समझा, क्योंकि उसे प्रेमयोगी वज्र ने अपनी अकस्मात व क्षणिक कुंडलिनी जागरण के एकदम बाद लिखा था, जिससे उसमें कुछ दिव्य प्रेरणा और दिव्य शक्ति हो सकती थी। इसीलिए हमने वैसे पाठकों के लिए उसके मात्र शरीरविज्ञान दर्शन भाग को ही नए रूप में प्रस्तुत किया। हालांकि यही शरीरविज्ञान दर्शन असली व मूलरूप है, जिसे प्रेमयोगी वज्र ने तथाकथित जागृति से बहुत पहले लिखना शुरु कर दिया था, बेशक उसने अपने आध्यात्मिक अनुभवों को जोड़ते हुए इसे अंतिम रूप बाद में दिया। ऐसी ही, एक आधुनिक कुण्डलिनी तंत्र
(एक योगी की प्रेमकथा) नाम की एक अन्य पुस्तक भी है, जो इसी मूल पुस्तक से निकली है। इसमें मूल पुस्तक के योगात्मक व आध्यात्मिक पहलू पर ही मुख्यतः गौर किया गया है। आशा है कि यह पुस्तक जन-आकांक्षाओं पर खरा उतरेगी।
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