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“पंक्तियाँ – ख्यालों की लड़ी! में शब्द महज़ अक्षर नहीं, बल्कि उन ख्यालों की यात्रा हैं जो दिल से निकलकर काग़ज़ पर उतरते हैं। ये पंक्तियाँ हमारे भीतर की उलझनों, प्रेम, विरह, संघर्ष, उम्मीद और आत्म-चेतना को सरल और संवेदनशील शब्दों में पिरोती हैं। हर पंक्ति में जीवन की वह झलक मिलती है, जो हमें रोज़मर्रा की भीड़ में खो जाने से बचाती है।कभी यह लड़ी अधूरी रह जाती है, तो कभी कुछ पंक्तियाँ इतनी गूंज जाती हैं कि भीतर कुछ बदलने लगता है। इन पंक्तियों में आपके और मेरे जैसे इंसानों की कहानियाँ हैं- जो रिश्तों में टूटते हैं, उम्मीद में जुड़ते हैं,ख्वाब देखते हैं और फिर हकीकत से लड़ने निकल पड़ते हैं।“पंक्तियाँ”- ख्यालों की लड़ी! का मक़सद यह नहीं कि हर शब्द में बड़ी बात कह दी जाए, बल्कि यह है कि एक साधारण ख्याल भी किसी के दिल को छू जाए।
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