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यह कहानी एक ऐसी बुज़ुर्ग स्त्री की है
जो अपने जीवन को चाँद के घटते- बढ़ते रूपों से जोड़ती है।
हर अध्याय जीवन की एक रात है, जिसमें
यादें, पछतावे, प्रेम और आत्मस्वीकृति के स्वर गूंजते हैं।
'धीरे-धीरे घटता चाँद'
उन स्त्रियों की ओर एक नज़र है
जिनके जीवन की कहानियाँ अक्सर अनसुनी रह जाती हैं।
धीरे-धीरे घटता चाँद
सिर्फ़ एक कहानी नहीं है —
यह उन आवाज़ों की गूंज है जो अक्सर घर के आँगन में रह जाती हैं।
सावित्री की यात्रा में हम अपनी माँ, दादी, और पड़ोस की किसी चुप औरत को देख सकते हैं।
यह किताब उन्हें समर्पित है — जो बोलती नहीं, पर सब कुछ कह जाती हैं।
बहुत ही सुन्दर उपन्यास छोटा है परन्तु अच्छा है
उत्कृष्ट लेखनी बहुत ही अच्छा लिखा गया है जैसा की लेखक का पहले रचना है उसे प्रकार से पढ़ कर मन आनंदित हो गया बहुत ही सुंदर मदन मोहन यादव जी
आपके उज्जवल भविष्य का कामना करता हूं और यूं ही आप मुस्कुराते हंसते रहिए बहुत ही सुंदर धन्यवाद