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यदि हम भूतकाल की स्मृतियों में खोए रहते हैं तो भविष्य की ओर यात्रा में विघ्न उत्पन्न हो सकता है । बीते हुए समय में की गई त्रुटियों से कुछ सीख कर आने वाले काल को स्वर्णिम अवश्य किया जा सकता है। दूसरी ओर, अतीत के सबक या अनुभवों पर विचार किए बिना वर्तमान में बहुत अधिक तल्लीन रहने से सफलता के मार्ग में बाधा उत्पन्न हो सकती है। अतीत के अपने रिश्तों नातों को याद कर, आज के सामजिक परिवेश में तुलना करके दुखी और अपने से लगने वाले रिश्तों से आघात मिल कर दुखी होने से अच्छा है उनसे स्वत: दूरी बना ली जाए क्यूंकि भौतिकता वाद के इस दौर में किसी से उम्मीद रखना स्वयं को छलावा देने सामान है। जहां छोटे एवं एकल परिवारों में पारिवारिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है वही आने वाली पीढी के लिए उन रिश्तों को आजीविका की दौड़ में चिरकाल तक निभा पाना असंभव सा होता जा रहा है । ऐसे में यदि किसी से अपेक्षा की जाए और वह उम्मीद में खरा ना उतर पाए तो मन दुखी तो होता ही है साथ ही भावी जीवन में भी निराशा उत्पन्न होती है।वास्तविकता यह है कि प्रियजनों से समर्थन की गारंटी नहीं है। चुनौतियों या समर्थन की कमी के बावजूद, व्यक्ति को दृढ़ रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए।
जिन अपनों की खातिर सर्वस्व कुर्बान किया तो व्याकुल मन को एहसास हुआ कि यहाँ तो हर शख्स रिश्ता निभा रहा था सिर्फ खुदगर्जी की खातिर कि ना जाने कब कहाँ किस से क्या काम पड जाएI अधूरी चाहतों की कशमकश का यह शोर सांसों की रफ़्तार तक ही कायम रहता हैI ख्वाब कहते हैं चाहतों की खातिर हदें भी पार कर जाओ, किन्तु हक़ीकत कहती है उसूल में रहे हैं जो शख्स वही अपनों के सुख को प्राप्त कर सका है I
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