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यह पुस्तक मेरे लेखकीय जीवन में विशेष महत्व रखती है । मैं 25 वर्षों से लगातार लिख रहा था और नवभारत टाईम्स , राष्ट्रीय सहारा , अमर उजाला, हिंदुस्तान दैनिक सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य प्रकाशित हो रहे थे । रचनाएँ लोकप्रिय होती जा रही थीं , मैं सभी पत्रों के संपादक मण्डल का जितना भी धन्यवाद दूं वह कम है । चाहे वह अमर उजाला के श्री कल्लोल चक्रवर्ती हों , नव भारत टाईम्स के श्री गोविंद सिंह , बाल मुकुन्द या संजय कुन्दन लेकिन समय का फेर कि पुस्तक के रूप में मेरी कविता की पुस्तकें प्रकाशित हो रही थीं । पहली हिन्दी अकादमी दिल्ली से सत्य जीतता है और दूसरी "संभावना" । मैं व्यंग्य की पुस्तक के प्रकाशन के लिए प्रयासरत थी लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था ।
संभावना को जब प्रांजल धर की लेखनी ने दैनिक जागरण में वर्ष की श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों में शामिल किया तो यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी आत्मिक संतुष्टि का क्षण था । लेकिन इसी पुस्तक की ई कापी जब अपने मित्र सुमन जी को भेजी और उन्होने मुझे पुस्तक बाजार पर अपनी पुस्तक प्रकाशित करने के विषय में बताया तो वह क्षण मेरे लिए लेखन में संभावनाओ के द्वार खोलेने वाला क्षण था ।
एक लंबी प्रक्रिया के बाद PustakBazaar.com कनाडा से गुरू गूगल दोऊ खड़े का प्रकाशित होना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था । इसके पश्चात लेखन में निरंतर मिल रही सफलता ने मुझे नई राह दिखा दी । मैं इस पुस्तक के लिए आदरणीय सुमन जी का सदैव आभारी रहूँगा ।
इस पुस्तक के बाद मैंने अपनी रचनाएँ किंडल पर लोड करनी शुरू कीं और वे लगातार पुस्तक के रूप में छपने लगीं । मेरे लिए सब से सुखद क्षण वह रहा जब मेरे पुस्तक "संभावना" का अग्रेजी अनुवाद पेपर बैक में किंडल से प्रकाशित हुआ ।
हम लोगों ने साहित्य का प्रवाह बस एक दिशा में देखा है अर्थात अधिकांश साहित्य अग्रेजी से हिन्दी में अनूदित हो कर पाठकों तक आता है और हम उसकी प्रशंसा करते हैं । यह मैं अपने साथ एक नई घटना के रूप में देख रहा हूँ की मेरे सभी पुस्तकें हिन्दी से अग्रेजी में ट्रांस्लेट हो रही हैं और वे सराही जा रही हैं विश्व भर में पढ़ी जा रही हैं ।
अभी बस एक वर्ष में मेरी लगभग 500 पुस्तकें इन्टरनेट पर डाऊन लोड हुई हैं ।
जीवन में कभी भी मैंने पैसे के लिए नहीं लिखा है । लिखना मुझे आत्मसंतुष्टी प्रदान करता है बस इसीलिए लिखता चला जाता हूँ । मेरे लिए अपने प्रशंसकों के शब्द , उनकी सराहना और लगातार मुझसे बेहतर रचना की अपेक्षा ही मेरे जीवन की संजीवनी है । यह लिस्ट इतनी बड़ी है कि चाह कर भी मैं सभी नाम नहीं लिख सकूँगा । हाँ इतना ही कहूँगा कि मैं हृदय से अपने पाठकों का आभारी हूँ जिनका अपार स्नेह मुझे मिला है । यह उनके ही स्नेह का परिणाम है कि मैं अपने सभी कार्य को पुस्तक रूप प्रदान करते हुये पेपर बैक पर स्वरूप में ला रहा हूँ । पोथी का आभार दिये बिना मेरी बात अधूरी रहेगी ।
पुस्तक की सभी रचनाएँ पहले ही विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित है इन्हें एक ही स्थान पर पढ़ना निश्चय ही मेरे स्नेही पाठकों के लिए एक सुखद अनुभव होगा ऐसा मेरा विश्वास है । इन्हीं शब्दों के साथ सादर
गुरू गूगल हा हा हा क्या बात है
मजा आ गया पढ़ कर एक से एक व्यंग्य ।
मुद्दत बाद स्तरीय हास्य पढ़ने को मिला ।
किताब दिल को गुदगुदा गई । फेसबुकिया लफड़े , आफिस रस और हाय रे एक छुट्टी ने हंसा हंसा के पागल कर दिया कई बार पढ़ा इन्हें मैंने ।