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"वो जो ख़ुद से भी नाराज़ रहता था..."
यह किताब सिर्फ़ जौन एलिया की ज़िंदगी की कहानी नहीं है — यह एक ऐसे शख़्स की दास्तान है जिसने मोहब्बत को मज़हब, तन्हाई को हमसफ़र और शायरी को इबादत बना लिया।
बचपन की जिज्ञासा से लेकर पहली ग़ज़ल की रचना, और ज़ाहिदा हिना से मोहब्बत की ख़ामोश तहरीरें — हर बाब इस किताब में एक नया आलम खोलता है।
यह सफ़र इल्म, बग़ावत, दर्द और ख़ुदकलामी का है — एक शायर का जो पूरी दुनिया से ज़्यादा ख़ुद से उलझा रहा।
हर पन्ना एक तन्हा रात की तरह है — जिसमें जौन की आवाज़ है, जौन की तड़प, और वो सच्चाई जिसे दुनिया अक्सर समझना नहीं चाहती।
अगर आपने कभी किसी अधूरी मोहब्बत को जिया है, किसी ख़याल से इश्क़ किया है — तो यह किताब आपके लिए है।
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लेखक:
— एक मुसाफ़िर, जो जौन के अल्फ़ाज़ों में अपना अक्स ढूँढता है।
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