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"शब्द जहाँ ख़त्म होते हैं, वहाँ सोच की असली यात्रा शुरू होती है।"
यह किताब उन अनकहे विचारों, अनसुने सवालों और अनजाने एहसासों की खोज है, जो हमारी आत्मा की खामोशी में चुपचाप पलते रहते हैं।
"सोच के पार" एक वैचारिक यात्रा है — जहाँ हर अध्याय अपने भीतर एक अंतर्दृष्टि लिए हुए है, जो न केवल पाठक को झकझोरती है बल्कि उसे स्वयं से संवाद करने पर भी मजबूर करती है।
यह किताब भावनाओं, तर्कों और आत्मचिंतन के उस बिंदु तक पहुँचती है जहाँ ‘शब्द’ मौन में विलीन हो जाते हैं और ‘खामोशी’ अपने पूरे स्वरूप में बोलने लगती है।
यह सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है — यह महसूस करने के लिए है।
हर पृष्ठ एक सवाल है।
हर सवाल — एक उत्तर की शुरुआत।
अगर आपने कभी चुप्पियों में गहराई खोजी है, तो यह किताब आपके लिए है।
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