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कविताएं बोलती हैं

कविताएं बोलती हैं

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SUBHASHSEH 5 months, 1 week ago

उतर आती हैं जब कागज़ पर.....

जब जिह्वाओं पर लग जाएं ताले,
मन के भाव कोई ना निकाले।
जब दिल हो जाएं काले,
और मस्तिष्कों में लग जाएं जाले।।
तो कोनों खुदरों से निकल आती हैं,
सारे जग की व्यथा सुनाती हैं।
दिलों के भाव फरोलती हैं,
कविताएं बोलती हैं।।
जब रक्षक भक्षक बन जाए,
जनता को रह रह तड़पाये।
और उसकी वाणी को दबाये,
कोई रास्ता नज़र ना आये।।
तो, कविताएं बोलती हैं,
हां हां, कविताएं बोलती हैं।
कोनों खुदरों से निकल आती हैं,
सारे जग की व्यथा सुनाती हैं।
दिलों के भाव फरोलती हैं,
कविताएं बोलती हैं।।
और, जब खुशी से मन भर आए,
और नाचने को मनवा चाहे।
विचारों की बरखा आए,
और भावों की गंगा बहाए।।
तो, कविताएं बोलती हैं,
खुशी में डोलती हैं।
सतरंगी रंगो से भरी भावनाएं,
भावों में घोलती हैं।।
हां हां, कविताएं बोलती हैं।
कविताएं बोलती हैं।।